झूठे, मान, सम्मान के लिए
अपने अपने जहन में
अपेक्षाएं
सहेज, संजो, पाल के रख लीं !
या, यूं कहें
सम्मान के लिए
भले झूठा-मूठा ही सही
सम्मान तो सम्मान, होता है
झूठे सम्मान के लिए
नई रणनीति बना कर
स्थापित व प्रतिभाशाली
व्यक्तित्वों की, उपेक्षाएं, शुरू कर दीं !
कोई मापदंड नहीं, कोई नीति नहीं
जो मन में आया
उसे ही, लाग-लपेट कर
प्रतिभाओं, प्रतिभाशाली व्यक्तित्वों को
नींचा, ओछा, बेकार
बता बता कर, चिल्ला चिल्ला कर
उपेक्षित कर दिया !
हुआ ये, कि
उपेक्षाएं और अपेक्षाएं
झूठे लोगों की -
झूठी ही सही, अमर हो गईं !!
4 comments:
badhiya kavita...
हमेशा की तरह आपकी रचना जानदार और शानदार है।
यही क्रम हर जगह भ्रम फैलाये है।
बहुत खूब , मैं ब्लॉग जगत में नया हूँ सो मेरा मार्गदर्सन करे..
www.anjaan45.blogspot.com
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