उफ़ ! चलो हम मान लेते हैं, जो तुमने कहा है
क्या तुमने भी चाहा है, कभी औरों को सुनना !
...
काश इन पलों में, हम तुम्हारे सांथ होते
दूर से ही सही, पर नज़रों से, तुम्हें छूते !
...
'रब' जाने, कब तलक, तुम्हारी चाह है छपना
दिलों को आस है अब भी, दिलों में राज हो तेरा !
...
तू जब तक थी नहीं मेरी, क्या शिकवा करूं मैं
जब तू हो गई मेरी, फिर क्या शिकवा करूं मैं !
...
तेरी रुस्वाई, बेवफाई, और तेरी बेरुखी का आलम
उफ़ ! बहुत हल्का लगे था, तेरी मुस्कान के आगे !
...
क्या करोगे जान कर, मेरी ज़ुबानी, बातें मेरी
गर फुर्सत मिले, मेरे शब्दों को टटोल लेना !
...
मखमली मौज से, तेरा वास्ता रहा हरदम
ये पत्थरों का शहर है, ज़रा संभल के चल !!
6 comments:
बेहतरीन पंक्तियाँ।
आपकी हिदायत सर आंखों पर..
ाच्छे भाव हैं। शुभकामनायें।
good one sir
बहुत ही सुंदर प्रस्तुति ......!!
आदरणीय उद जी
नमस्कार !
बेहतरीन दिल को छू लेने वाली प्रस्तुती
कमाल की लेखनी है आपकी लेखनी को नमन बधाई
Post a Comment