मुंह फेर के नहीं, आशिकी में खुद को आजमा रहा है
कहीं, किसी न्यूज एंकर को देख लार टपका रहा है !
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जब सरहद पार तक, उठती रही निगाह तेरी
फिर बच्चों का कुसूर क्या, दहलीज पार जो हुए !
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सुनते हैं, चाहतों के मजहब नहीं होते
आशिकी में, उम्र के बंधन नहीं होते !
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क्या हुआ, जो हम, तुझपे फना न हुए
जो हुए थे, उनका ज़रा कुसूर तो बता !
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किसी ने कर लिया गुनाह, पता पूंछ के तेरा
शहर में कौन नहीं है, जो तुझे जानता नहीं !
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किसी ने गिरा लिया खुद को, तेरी निगाह में
खता इतनी ही रही, कुछ घड़ी का सांथ चाहा था !
6 comments:
वाह.... क्या बात है !
वाह वाह।
सारे शेर एक से बढ़कर एक है। आभार।
जब सरहद पार तक, उठती रही निगाह तेरी
फिर बच्चों का कुसूर क्या, दहलीज पार जो हुए !
वाह वाह जनाब जबाब नही, बहुत खुब
एक से बढ़कर एक सारे शेर
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