गिर तो गए थे, बहते बहते, लगे हम किनारे
सच ! गर डूबे न होते, तो ये मंजिल न होती !
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रहने दें, किस किस को रहने दें, और क्यों रहने दें
उफ़ ! कल कोई कहे, जाने दे, रहने दे, जान ही तो है !
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सच ! अभी तो शुरू हुए हैं झड़ना, पत्ते दरख़्त के
गर ऐसा हुआ तो, जड़ से उखड़ना तय ही लगे है !
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इन हवाओं को कोई झौंके न समझे
सच ! ये तूफां हैं, सरकारें उड़ा देंगे !
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जलना था हमें, हौले हौले जहां में उम्र भर
घोर अंधेरों में, चिराग बन जो जल रहे थे !
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कांव-कांव सुन लो, कऊओं की आज तुम
वो घड़ी भी आयेगी वे फडफडा न पायेंगे !
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सच ! हम जाग रहे थे सोते सोते, उन नींदों का कहना क्या
कोई सो रहा था सुनते सुनते, उसको किस्सा कहना क्या !
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नौंक-झौंक, ताक-झांक, चिल्ल-पौं, कचर-पचर, गाली-गुल्ला
उफ़ ! कोई माने या न माने, शायद जिन्दगी इसी को कहते हैं !
1 comment:
गज़ब के शेर कहते हैं ...हर एक में गहन बात होती है ..
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