Tuesday, April 12, 2011

अंधकार ...

चंहू ओर
तुम नजर उठाओ
देखो
आंगन, गलियां, बस्ती
सारे जग में
काली रातें, घोर अन्धेरा
और कहीं
कुछ दिखता है क्या ?
मत फूंको
तुम दीपक को ...
बहुत है फैला
अंधकार
जलने दो, जल जाने दो !!

3 comments:

Patali-The-Village said...

बहुत सुन्दर अभिब्यक्ति उदय जी| धन्यवाद|

Randhir Singh Suman said...

nice

प्रवीण पाण्डेय said...

बेहतरीन अभिव्यक्ति।