यूरोप के फ्रांस देश में विगत दिनों महिलाओं के बुर्के पहनने पर कानूनी रूप से रोक लगा दी गई है नए क़ानून के तहत सार्वजनिक स्थल पर बुर्का पहने पाए जाने पर १५० यूरो अर्थात ९००० रुपये के जुर्माने से दण्डित किया जाएगा । फ्रांस में निवासरत मुसलमानों ने इस निर्णय का कडा विरोध जाहिर किया है तथा आगे भी इस निर्णय का विरोध करने का फैसला लिया है, गौरतलब हो कि फ्रांस में लगभग ५० लाख मुसलमान रहते हैं जो किसी भी अन्य यूरोपीय देश की तुलना में अधिक हैं । कुछेक कट्टर समर्थकों ने इस फैसले का घोर विरोध किया है तो वहीं दूसरी ओर कुछेक लोगों का यह भी कहना है कि वे बुर्का पहनने का समर्थन नहीं करते किन्तु प्रतिबंधित किये जाने के फैसले से सहमत नहीं हैं ।
न सिर्फ फ्रांस में वरन समूचे विश्व में मुस्लिम महिलाओं में बुर्का पहनने की परम्परा है जो आज की नहीं वरन सदियों से चली आ रही परम्परा है, इसलिए मेरा मानना है कि यदि मुस्लिम महिलाएं स्वैच्छिक रूप से बुर्का पहनने को प्राथमिकता देती हैं तो इसे कतई प्रतिबंधित नहीं किया जाना चाहिए, सांथ ही सांथ यह भी गौर किये जाने वाली बात है कि २१ वीं शताब्दी में यदि जोर व दवाव पूर्वक महिलाएं बुर्का पहनने को मजबूर हैं तो यह मसला गहन विचारणीय है । ये माना कि वर्त्तमान समय में बढ़ रही आतंकी घटनाओं को ध्यान में रखते हुए तथा सुरक्षागत कारणों के मद्देनजर समय समय पर सुरक्षा एजेंसियों को कड़े कदम उठाने पड़ते हैं किन्तु इसका यह मतलब कतई नहीं होना चाहिए कि सुरक्षा व एहतियात के लिए मानव अधिकारों की बली चढ़ा दी जाए ।
न सिर्फ फ्रांस वरन दुनिया के तमाम मुल्कों में तरह तरह की पोशाकें पहनने का रिवाज सदा-सदा से चला आ रहा है, खासतौर पर सिर्फ बुर्का ही नहीं वरन धोती, लुंगी, साड़ी, पगड़ी, इत्यादि ऐसे लिबास हैं जो सदियों से पहने जा रहे हैं जिनसे मानवीय, धार्मिक व सांस्कृतिक आस्था जुडी हुई है अत: इन लिबासों को तथा इसी तरह के अन्य लिबासों को एका-एक संदेह के दायरे में खडा कर देना लाजिमी नहीं होगा । वैसे मेरा मानना है कि सदियों से चली आ रही परम्पराओं पर एका-एक प्रतिबन्ध न लगाते हुए वर्त्तमान हालात व समस्याओं के मद्देनजर कुछेक दिशा निर्देश जारी किये जाने चाहिए जो वर्त्तमान समय तथा सदियों से चली आ रही परम्पराओं के बीच समन्वय स्थापित करें तथा एक सेतु की भांति सार्थक सिद्ध हों !
8 comments:
बुर्के पर प्रतिबन्ध से आपको दिक्कत हो रही है. आज यह आपकी लेखनी से लिखा हुआ नहीं लगता. स्वैच्छिक बुर्का कितनी महिलायें पहनती हैं, मैं बहुत अच्छी तरह से जानता हूं. यह कदम सराहनीय है. भारत में तो कई बार लोग बुर्के का उपयोग छद्म आवरण के लिये करते हैं. लिहाजा फ्रांस ने उचित किया है, हम सब आखिर नकाब में क्यों नहीं रहना पसन्द करते.
@ भारतीय नागरिक - Indian Citizen ji ... मेरा मानना है की जो परम्पराएं सदियों से चली आ रहीं हैं उन पर एका-एक प्रतिबन्ध लगा देना सार्थक नहीं है, गुण-दोष, उचित-अनुचित, सही-गलत का फैसला चर्चा-परिचर्चा, सलाह-मशवरा के आधार पर, वर्त्तमान हालात के अनुरूप किये जाने से समन्वय स्थापित करने की पहल की जानी चाहिए ... !!
आदरणीय बन्धु, यह एकाएक नहीं है, पिछले कई वर्षों से यह मामला चल रहा था, फ्रांस सरकार ने काफी सोच-विचार कर यह कदम उठाया. कुछ परम्परायें ऐसी होती हैं जिन्हें त्यागना अधिक उचित होता है, जैसे कि सती प्रथा. भारत में हिन्दुओं में भी एक से अधिक विवाह करने की परम्परा थी किन्तु सरकार ने उसे खत्म कर दिया.
सांस्कृतिक संघर्ष।
प्रतिबन्ध लगा देना सार्थक नहीं है
वाह पहली बार पढ़ा आपको बहुत अच्छा लगा.
aapse sahamat hun.
बुर्का जबरन थोपी गई संस्कृति का ही हिस्सा है. यह पूरी दुनिया से हट जानी चाहिये.
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