Monday, April 25, 2011

उफ़ ! क्या खूब बस्ती है, और क्या खूब हैं दस्तूर !

उफ़ ! किसी को आज भी, है इंतज़ार तेरा
मकबरे में बैठ के, तुझे पुकारता है कोई !
...
दिवालियेपन की मिशालें अपने आप में बेमिशाल हैं
बहुत लोग दौलतें रख कर भी दिवालिये बने बैठे हैं !
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आँधी, तूफां, बारिश, रिमझिम-रिमझिम मौसम डोले
तुम भी भीगे, हम भी भीगे, मौसम के हैं हंसी ठिठोले !
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तेरा मिलना, खुशियों की सौगात सा लगे है
सच ! वजह-बेवजह हमसे मिल लिया करो !
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क्या कहें, अब हमें इन आँखों पे यकीन नहीं होता
उफ़ ! इनका पैमाना कभी हमें रास आया नहीं है !
...
लंगड़े, लूले, भेंगे, कांणे, कंजे, तिरपट, लम्पट
उफ़ ! क्या खूब बस्ती है, और क्या खूब हैं दस्तूर !

2 comments:

ANJAAN said...

वाह क्या खूब बस्ती है

संजय भास्‍कर said...

.........ला-जवाब" जबर्दस्त!!