जलता रहा, जल गया, अब ख़ाक हो गया हूँ
आज भी वजूद मेरा, राख बन हवाओं में है !
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सारे वतन में, तड़फ और ग़मों का आलम है 'उदय'
हुक्मरानों को, घर की नहीं, पड़ोस की चिंता हुई है !
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भूल गए, वादे तोड़ गए, चले गए, छोड़ कर हमें
उफ़ ! लगे ऐसे, जैसे वो आज भी चाहते हैं हमें !
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सब, दोपहर, शाम, रात, उफ़ ! जब देखूं देखता रहूँ
अब तू ही बता मुझको, कब तू अच्छी नहीं लगती !
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जीते रहे, बेसहारा रहे, अब मर गए, मौज रहेगी 'उदय'
साहित्य सागर में, जिन्दों का नहीं, मुर्दों का बसेरा है !
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जो लातों के भूत हैं, कैसे बातों में मान लें
गुस्सा भी बढ गया, चप्पल भी चल गई !!
3 comments:
bahut baddhiya...
बहुत बढ़िया ...
बहुत खूब
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