दर्द, बढ़ता रहा
फिर भी, हम, चलते रहे !
कोई
कहता भी क्या
हम
सुनते भी क्या
सफ़र
चलता रहा
राहें, घटती रहीं
हम
चलते रहे
और, बढ़ते रहे !
हमें
चलना ही था
आगे बढ़ना ही था
चलते रहे, चलते चले !
कभी
सर्द रातें मिलीं
कभी
गर्म राहें मिलीं
हम
रुके नहीं
और, थके नहीं
चलते रहे, चलते चले !
कदम दर कदम
मंजिलों
और, ख़्वाबों की ओर !!
2 comments:
बहुत खूबसूरत अभिब्यक्ति| धन्यवाद|
अच्छी लगी दिल को छू गयी सर जी
ख्वाब तो ख्वाब हैं इनका तो काम ही बनना और टूटना है,
ये तो हमें तय करना है कि टूटें ख्वाबों के लिए ठहरें या फिर मंजिल की ओर बढ चले एक नए ख्वाब के साथ ..
Post a Comment