सच ! हमें तो लगे ऐसे, जैसे तिलस्मी गहराई हुई है
बिना माया, मायावी शक्तियों के, है मापना मुश्किल !
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समय रहते संभल जाओ, न इतराओ तुम हुश्न पे अपने
सच ! ये काया है मिट्टी की, न जाने कब सिकुड़ जाए !
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क्या कहें, भ्रष्टतंत्र पर, लोकतंत्र का कोई जोर नहीं
सच ! बहुत हो चुका भ्रष्टाचार, बस अब और नहीं !
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बेकरारी का सबब, हमें मालूम है 'उदय'
क्या करें, फिर भी वहां जाना हमें मंजूर है !
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कब तलक, आईने से, करें परहेज हम
जब भी देखेंगे, गुनह झलक ही जाएंगे !
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हमें तो मुल्क ये, चोरों - उचक्कों का लगे है
पंचायत से जेल तक, लुटेरों की लाईन लगी है !
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चुप हम बैठे थे, बड़ी खामोशियाँ थीं
लव जो खोले, तो सभी रोने लगे !!
4 comments:
bahut khub sir
bhaut khub sir
JWAAB NAHI AAPKA SIR JI
BEHTREEN
कड़वी दवा जरूरी है
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