Wednesday, April 13, 2011

कांव कांव का शोर बढ़ा है जग में यारो ..... !!

सच ! भ्रष्टता की कीचड में सने हैं लोग
लोकतंत्र रूपी इत्र भी, हुआ है बेअसर !
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कभी कभी पढ़ लेते हैं, हम भी दर्द की किताबें
सच ! होता है हर फलसफे पे, नाम तुम्हारा ही !
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बाअदब तेरी खुबसूरती अदाओं को सलाम
ये मंजर, ज़रा ठहरे रहें तो हमें सुकून मिले !
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कांव कांव का शोर बढ़ा है जग में यारो
कोई बताए मंशा इनकी हमको यारो !
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डर, नफ़ा, नुक्सान के चक्कर में क्यों छिपते फिरें
सच ! जो भी है मेरा, सारे जग में बिखरा पडा है !
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सच ! जो मन में आता है, लिख देता हूँ
पढ़ने वाले जानें, कि मैं क्या लिखता हूँ !
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रात-दिन मीडिया के सवालों में, उलझ कर
सच ! मुमकिन है थोड़ा-बहुत बहक जाना !
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सच ! दोनों हैं मझधार में, सोचें पार लगेंगे कैसे
भ्रष्टाचार विरोधी आंधी, देख देख आँख हैं मीचे !

4 comments:

kshama said...

Kya kahun? "Wo subah kabhee to aayegee.....?"

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

उसी सुबह का तो इन्तजार है...

Patali-The-Village said...

वाह! क्या खूब लिखा है| कभी तो वह सुबह आएगी|

प्रवीण पाण्डेय said...

वह सोंधी महक कब आयेगी।