मस्तमौला हो लिए !
तैश सी बातें सुने जब
डगमग डगमग हो लिए !
ना ठंडे, ना गरम
सम्बन्ध गुनगुने कर लिए !
कौन ठिठुरता ठण्ड में
या झुलसता धूप में !
न इधर, न उधर
पकड़ी एक नई डगर !
बीच के रस्ते सुहाने
जानकर और मानकर !
नेता, अफसर, पत्रकार
गुनगुने-गुनगुने से हो लिए !!
7 comments:
bhtrin chitrn prtutikaran mubark ho . akhtar khan akela kota rajsthan
सब अपनी गर्माहट में रमे।
वाह क्या बात है
आजकल तो इसी गुनगुने पन का फैशन है
बहुत खुब जी
gungune shavd ka prayou bada suhana raha.
prayog shavd se tatpary tha...
नेता, अफसर के साथ—साथ पत्रकार का गुनगुना होना बड़ी मुश्किल से स्थापित हो पाया है !!
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