सनम का दुपट्टा, है किसी बेवफा के हाथ में
लोग बेवजह ही मर रहे हैं, कफ़न की आस में !
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जलने दो मुझे, जब तक जहन में शोले हैं
शीत बहुत है, किसी न किसी के काम आऊँगा !
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सच बोलने की जरुरत क्या थी, क्या पता नहीं था
सच ! सच बोलना गुनाह हुआ है, अपने वतन में !
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कातिल कह रहे हैं, 'उदय' क़त्ल गुनाह है
सच ! मंहगाई से मरा है, क़त्ल नहीं है ये !
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कोई कह रहा था उसको, पागल हुआ है वो
पर कोई सोचता नहीं है, ऐसा वो क्यूं हुआ !
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उफ़ ! नाकाबिलों की हुकूमत है, हम किसे ढूंढ रहे हैं 'उदय'
किसी काबिल को, शायद किसी कोने-काने में पडा होगा !
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थका, निढाल, उदास, खामोश, दबा, कुचला
सच ! ये अपना गणतंत्र है 'उदय', भ्रष्टतंत्र हुआ है !
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आओ चलें, ढूंढ लें, चिंतन में छिपे रहस्यों को 'उदय'
तुम्हारे, हमारे, किसी और के, कभी काम आयेंगे !
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कब तक मौन रहें, भाव मन के मचलते हैं 'उदय'
अब तुम्हें चाहना भी, किसी इम्तिहां से कम न हुआ !
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सुना है कल बस्ती में, तूफां ने कहर बरपाया है
बहुत दुखी होंगे, चलो उजड़े घरौंदें संवारे जाएं !
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'उदय' को है खबर, सुख-दुख के घरौंदें नहीं होते
उनकी निगाह में, कोई नवाब, कोई फ़कीर नहीं होते !
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सच ! सर कलम क्यूं न हो जाए, ए वतन तुझ पे
जो दरिन्दे सर उठाएंगे, उन्हें हम कलम कर देंगे !
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कमाल है खूब रिपब्लिक डे, मन रहा है 'उदय'
ब्लॉग, आर्कुट, ट्वीटर, फेसबुक, मौजे ही मौजे हैं !
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'तिरंगे' की शान अब संभलती नहीं 'उदय'
उफ़ ! क्या करें, मजबूर हैं, भ्रष्ट हुए हैं !
9 comments:
हर एक शेर सही हालातों को बयां कर रहा है.
सच बोलने की जरुरत क्या थी, क्या पता नहीं था
सच ! सच बोलना गुनाह हुआ है, अपने वतन में !
अगर अपने वतन में सच बोलना गुनाह है तो इसे बदलना पड़ेगा ...हालत पर सटीक है आपकी यह रचना ...शुक्रिया
पीड़ा सबके घर आती है।
थका, निढाल, उदास, खामोश, दबा, कुचला
सच ! ये अपना गणतंत्र है 'उदय', भ्रष्टतंत्र हुआ है !
वेदना की स्पष्ट अभिव्यक्ति.
राष्ट्र के वेदना का मानवीकरण
वेदना की स्पष्ट अभिव्यक्ति| धन्यवाद|
सच बोलने की जरुरत क्या थी, क्या पता नहीं था
सच ! सच बोलना गुनाह हुआ है, अपने वतन में !
बहुत ही अच्छी कविता आज के हालात के अनुसार
हालत पर सटीक है आपकी रचना
बहुत प्रेरणा देती हुई सुन्दर रचना ...जय भारत
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