धन्ना सेठ ...
गाँव का, सबसे अमीर
जानते थे सब उसको
दौलतें पीठ पे बांध चलता
सिरहाने रख सोता था
चिलचिलाती धूप में,
सड़क पर पडा है, मर गया !
काश, कोई परिजन ...
हैं बहुत, पर कोई नहीं आया
सब तंग थे, शायद, उससे
पता नहीं, क्यों
बहुत लालची था
दौलत को ही समझता, अपना !
पर, बेचारा, आज सड़क पे
पडा है, मरा हुआ
एक गठरी में दौलतें
अभी भी, बंधी हुई हैं
पीठ पे उसके, पर कोई
छू भी नहीं रहा
शायद सब डरे हुए हैं !
हाँ, कुछेक को
दिख भी रही है उसकी रूह
वहीं, सड़क पर , किनारे
गठरी को निहारती
हाथ बढ़ाकर उठाने की
लालसा, अभी भी है !
पर, क्या करे
गठरी उठती नहीं
शायद, बोझ ज्यादा है
गठरी का, दौलत का
बेचारा मर गया
चिलचिलाती धूप में
धन्ना सेठ ... !!
9 comments:
पर क्या करेँ गठरी उठती नही ,वाह बहुत खूब
पर, क्या करे
गठरी उठती नहीं
शायद, बोझ ज्यादा है
गठरी का, दौलत का
बेचारा मर गया
चिलचिलाती धूप में
धन्ना सेठ !!
हर धन्ना सेठ की हालत यही होती है अंतिम वक़्त ....बहुत सही पहचाना ...शुक्रिया
धन का सत्य बता दिया, मन का सत्य समझना होगा सभी को।
वाकई कड़ुवा.
एक सन्देश देती उम्दा पोस्ट! बधाई !धन जमा करने की लालसा जान ले बैठी,
धन्ना सेठ
गाँव का, सबसे अमीर
जानते थे सब उसको
दौलतें पीठ पे बांध चलता
सिरहाने रख सोता था
चिलचिलाती धूप में,
सड़क पर पडा है, मर गया !
Kaisi vidambana hai!
बहुत सुंदर विचार जी, ओर ऎसे धन्ना सेठ कुछ इसी तरह से मरते हे, इन कॊ ओलाद भी इन्हे दे्खने नही आती
सार्थक सन्देश देती रचना, आभार
पर, क्या करे
गठरी उठती नहीं
शायद, बोझ ज्यादा है
गठरी का, दौलत का
बेचारा मर गया
चिलचिलाती धूप में
धन्ना सेठ !!
पैसे ही को सब कुछ समझने वालों का यही हाल होता है..बहुत सार्थक प्रस्तुति..
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