Friday, January 28, 2011

धन्ना सेठ ...

धन्ना सेठ ...
गाँव का, सबसे अमीर
जानते थे सब उसको
दौलतें पीठ पे बांध चलता
सिरहाने रख सोता था
चिलचिलाती धूप में,
सड़क पर पडा है, मर गया !

काश, कोई परिजन ...
हैं बहुत, पर कोई नहीं आया
सब तंग थे, शायद, उससे
पता नहीं, क्यों
बहुत लालची था
दौलत को ही समझता, अपना !

पर, बेचारा, आज सड़क पे
पडा है, मरा हुआ
एक गठरी में दौलतें
अभी भी, बंधी हुई हैं
पीठ पे उसके, पर कोई
छू भी नहीं रहा
शायद सब डरे हुए हैं !

हाँ, कुछेक को
दिख भी रही है उसकी रूह
वहीं, सड़क पर , किनारे
गठरी को निहारती
हाथ बढ़ाकर उठाने की
लालसा, अभी भी है !

पर, क्या करे
गठरी उठती नहीं
शायद, बोझ ज्यादा है
गठरी का, दौलत का
बेचारा मर गया
चिलचिलाती धूप में
धन्ना सेठ ... !!

9 comments:

Anonymous said...

पर क्या करेँ गठरी उठती नही ,वाह बहुत खूब

केवल राम said...

पर, क्या करे
गठरी उठती नहीं
शायद, बोझ ज्यादा है
गठरी का, दौलत का
बेचारा मर गया
चिलचिलाती धूप में
धन्ना सेठ !!

हर धन्ना सेठ की हालत यही होती है अंतिम वक़्त ....बहुत सही पहचाना ...शुक्रिया

प्रवीण पाण्डेय said...

धन का सत्य बता दिया, मन का सत्य समझना होगा सभी को।

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

वाकई कड़ुवा.

सुरेश शर्मा . कार्टूनिस्ट said...

एक सन्देश देती उम्दा पोस्ट! बधाई !धन जमा करने की लालसा जान ले बैठी,

kshama said...

धन्ना सेठ
गाँव का, सबसे अमीर
जानते थे सब उसको
दौलतें पीठ पे बांध चलता
सिरहाने रख सोता था
चिलचिलाती धूप में,
सड़क पर पडा है, मर गया !
Kaisi vidambana hai!

राज भाटिय़ा said...

बहुत सुंदर विचार जी, ओर ऎसे धन्ना सेठ कुछ इसी तरह से मरते हे, इन कॊ ओलाद भी इन्हे दे्खने नही आती

Arvind Jangid said...

सार्थक सन्देश देती रचना, आभार

Kailash Sharma said...

पर, क्या करे
गठरी उठती नहीं
शायद, बोझ ज्यादा है
गठरी का, दौलत का
बेचारा मर गया
चिलचिलाती धूप में
धन्ना सेठ !!

पैसे ही को सब कुछ समझने वालों का यही हाल होता है..बहुत सार्थक प्रस्तुति..