खुदा, सनम, उलफत, राहें, जिन्दगी
सच ! चलो मिलबांट के बसर कर लें !
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शब्द, इच्छा, प्रेम, दस्तक, दहलीज
सच ! चलो आजमा लें !
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फरेब उतना नहीं अंधेरों में
शायद हो जितना, सुबह के उजालों में !
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गुंजाइशों की जगह बरकरार रखना यारो
आशिकी में तकरार और सुलह, आम बात है !
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दफ्न कर के भी, सुकूं न मिला शायद
अब भी बैठे हैं, कब्र पे इठलाते हुए !
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तुम न सही, तुम्हारी बेवफाई के निशां, बहुत काम आए
सच ! हम वफ़ा भूल गए, फिर कोई बेवफा न निकला !
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सच ! तुम होती हो, रात गुजर जाती है
तुम्हारी याद में जलना खुशगवार नहीं !
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रात, चिराग, दिल, यादें, इंतज़ार में हैं
सच ! शायद कोई वादा भूल गया है !
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अब हमने भी, दुश्मनी के गुर सीख लिए हैं
चलो अच्छा हुआ, चहूँ ओर सन्नाटा है !
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गर चाहो मेरे फुर्सत के पलों में, सुस्ता लो ज़रा
सच ! सफ़र लंबा है, मुझे चलते जाना है !
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सब कुछ लुटाया था मैंने तुझ पर, शायद अंधा था
उफ़ ! भूत इश्क का उतर गया, अब सड़क पर हूँ !
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क्या अदब, क्या शान-शौकत है, मगर अफसोस
सच ! दौलत को ही सब कुछ समझते हैं !
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खंजर फेंक दो, गले लग जाओ यारो
माँ तड़फती है, टपकता लहू देख कर !
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उफ़ ! कब तक सहें धमकियां, कल गिराते हैं तो आज गिरा दें सरकार
क्या फर्क पड़ना है, स्वीस बैंक में जमा कालाधन कौनसा मेरा अपना है !
14 comments:
कालाधन किसी अड़ोसी-पड़ोसी का तो हो सकता है.
@ उदय जी
बिलकुल सत्य कहा आपने
तारीफ के लिए हर शब्द छोटा है - बेमिशाल प्रस्तुति - आभार.
सार्थक और बेहद खूबसूरत,प्रभावी,उम्दा रचना है..शुभकामनाएं।
आक्रोश का स्वर परिपूर्ण है, कुछ और न कहा जाये, इस पर।
gazab ki aag bhari hai aapke sheron me .
दफ्न कर के भी, सुकूं न मिला शायद
अब भी बैठे हैं, कब्र पे इठलाते हुए !
लाज़वाब...बहुत सुन्दर प्रस्तुति
भावनाओं को सलाम!
वर्तमान परिपेक्ष में उम्दा लेखन !
bahut hi umda likha hai ..
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दफ्न कर के भी, सुकूं न मिला शायद
अब भी बैठे हैं, कब्र पे इठलाते हुए !
बहुत सुंदर जी.
कब्र पे बैठे इठलाते हुए....क्या खूब कहा.
बहुत ही उम्दा...
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