Wednesday, January 19, 2011

क्या करें, कुछ समझ नहीं आता, कहीं सरकार न गिर जाए !!

कर लो प्रेम, शादी, अपने पेशे से, अफसोस नहीं
उफ़ ! लोगों ने गुनाहों को अपना पेशा बना डाला !
...
चलो कोई तो खुश है इन सरकारी झांकियों से 'उदय'
उफ़ ! जाने कब, आपकी, हमारी बारी आयेगी !
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क्या खुशनसीबी थी, किसी ने मरा कहा, राम मिल गए
उफ़ ! राम नाम जप के भ्रष्ट, मरते हैं, जीने देते हैं !
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झूठ
कहते हैं लोग, शराब गम हल्का कर देती है
सच ! हमने देखा है, बहुतों को नशे में रोते हुए !
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प्यार के नाम से जीते हैं, मर जाते हैं
रायशुमारी ! क्यों आजमा लें पहले !
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एक पल में कैसे उन्हें बेवफा कह दें 'उदय'
सच ! हमने देखी है वफ़ा की इन्तेहा उनमें !
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जमीं, मकां को अपना समझो
कोई कह रहा था शैतानों का शहर है !
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सुकूं की चाह ने, दीवाना बना दिया
सच ! बेचैन हैं, जब से मोहब्बत हुई है !
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क्या करें मजबूर हुए हैं, न्याय की चौखट पे सरेआम हुए हैं
गर उठाते खंजर, 'उदय' जाने, आबरू कब तक रौंधी जाती !
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अटकते, भटकते, लटकते, झटकते, उलझते, सुलझते
हम चले जा रहे थे, खुदा खैर जो तुम हम से टकरा गए !
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हमको था यकीं, है आलम दोस्ती का !
सच ! भ्रम टूट गया, सब दुश्मन निकले !
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शब्दों का सफ़र, सच ! जिन्दगी का सफ़र है
आओ बैठकर, कुछ बातें कर लें !
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समय दर समय, लोग चेहरा बदल बदल के मिलते हैं 'उदय'
कल सड़क पे एक लाश पडी थी, अभी मालूम हुआ दोस्त था !
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मंहगाई ! क्या करें, मजबूर हैं, समय नहीं है
सच ! सारे समय, स्वीस बैंक का कोड याद आता है !
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अफसोस नहीं, बीच मझधार में छोड़ गया
खुशनसीबी है, कम से कम ज़िंदा छोड़ गया !
...
पता नहीं किसकी दुआओं ने ज़िंदा रखा है
'उदय' जाने, कल तो मौत भी शर्मिन्दा थी !
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किनारे, नदी, प्यास, दरिया, तस्वीर, आईना
कब से बैठा हूँ, तिरे आँगन में गुनहगार की तरह !
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गाँव, शहर, शहादत, दहशत, तिजारत, शरारत
सच ! जीना दुश्वार हुआ, कातिलों का जूनून देखो !
...
चलो अच्छा हुआ जो गिरगिट सा हुनर सीख लिया
अब रंग के साथ साथ, चेहरे भी बदल लेते हैं !
...
गरीबों की बस्ती में, अब दीवाली मनती कहाँ है 'उदय'
वहां आज, जरुर कोई बम फटा होगा !
...
अफसोस नहीं, जो तुमने मुझे गुनहगार मान लिया
अब तो जब भी चाहेंगे, सरे राह तुम से मिल लेंगे !
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गरीबों की बस्तियों में, चूल्हे नहीं जला करते 'उदय'
किसी ने सच ही कहा है, वहां सिलेंडर कैसे फटा होगा !
...
गजल, गीत, भजन, का दौर है 'उदय'
चलो कोई बात नहीं, कुछ अपनी कह लेते हैं !
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कल खुश था, उसका तलवार का घाव जो भर गया था
सच ! आज दुखी है, अपनो की दी हुई गालियाँ जहन में हैं !
...
सच ! स्वीस बैंक, काला धन, सब अपने लोगों का है 'उदय'
क्या करें, कुछ समझ नहीं आता, कहीं सरकार गिर जाए !!

11 comments:

अरुण चन्द्र रॉय said...

आज के परिपेक्ष में सुन्दर ग़ज़ल.. विभिन्न आयामों को समेटे हुए..

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

सरकार का चलना अत्यावश्यक है...

संजय भास्‍कर said...

उम्दा लेखन,खूबसूरत अभिव्यक्ति
.........वाह वाह, क्या बात है कमाल की प्रस्तुति.....

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " said...

har sher koi na koi sarhak baat kah raha hai .
umda prastuti.

Kailash Sharma said...

गरीबों की बस्ती में, अब दीवाली मनती कहाँ है 'उदय'
वहां आज, जरुर कोई बम फटा होगा !
...
हरेक शेर बहुत सटीक और सार्थक ..बहुत सुन्दर

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

समकालीन परिवेश से जुडे शानदार शेर।

आभार।

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ज्‍योतिष,अंकविद्या,हस्‍तरेख,टोना-टोटका।
सांपों को दूध पिलाना पुण्‍य का काम है ?

Deepak Saini said...

उदय जी..
कैसे लिख जाते हो ऐसा सब..........

ज्ञानचंद मर्मज्ञ said...

गरीबों की बस्तियों में, चूल्हे नहीं जला करते 'उदय'
किसी ने सच ही कहा है, वहां सिलेंडर कैसे फटा होगा !

इस दौर का सबसे नुकीला व्यंग्य !
सारे शेर प्रभावशाली हैं !
धन्यवाद उदय जी,

गौरव शर्मा "भारतीय" said...

वाह...
बेहतरीन...

प्रवीण पाण्डेय said...

सच में अब तो दया आने लगी है।

राज भाटिय़ा said...

कहीं सरकार न गिर जाए !! अरे बाबा ओर कितना गिरेगी......
बहुत सुंदर कविता, धन्यवाद