दिलों के तार जब बजने लगें, मन के घरौंदे में
समझ जाना, यही अब हमारा आशियाना है !
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गर 'खुदा' मिल भी जाए तो क्या फर्क
शैतान थे और हैं, शैतानियत न छोड़ेंगे !
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चलो अच्छा हुआ ठंड ने तुम्हें, मेरी याद तो दिलाई
हम तो सिहर जाते हैं, कमबख्त तुम्हारी याद में !
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वाह वाह, क्या खूब यार बना रक्खे हैं
मरने की खबर सुनकर भी खामोश बैठे हैं !
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उनका वादा था 'खुदा खैर' बन के आने का
हम बेख़ौफ़ बैठे थे, और वो खौफ बन के आये !
16 comments:
उनका वादा था 'खुदा खैर' बन के आने का
हम बेख़ौफ़ बैठे थे, और वो खौफ बन के आये
वाह वाह क्या बात है
Sundar aur ruhaani !
बहत सुन्दर रचना| आभार|
अन्तिम शेर बहुत शानदार है..
यादें होती हैं सिरहन पैदा करने के लिये ही।
बहुत खूब ...
बेहतरीन शेर.......धन्यवाद.
चलो अच्छा हुआ ठण्ड ने तुम्हे मेरी याद तो दिलाई...... उदय जी क्या लिखा है!...साधुवाद.
वाह जनाब जबाब नही बहुत खुब, ओर अंत मे तो हद ही कर दी,इस सुंदर गजल के लिये आप का धन्यवाद
बहुत सुन्दर गज़ल्।
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (13/12/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.uchcharan.com
बहुत सुन्दर शेर कहें हैं .......
दिलों के तार जब बजने लगें, मन के घरौंदे में
समझ जाना, यही अब हमारा आशियाना है !
...यह बहुत अच्छा लगा।
उनका वादा था 'खुदा खैर' बन के आने का
हम बेख़ौफ़ बैठे थे, और वो खौफ बन के आये !
Kya baat kahee hai!
गर 'खुदा' मिल भी जाए तो क्या फर्क
शैतान थे और हैं, शैतानियत न छोड़ेंगे !
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ये हुई न उसूलों की बात :)
badhiya sher...
सुन्दर!
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