यार शिल्पी कुछ दिनों से मन में कुछ अजीब सा हो रहा है ... क्या हुआ बोलना आशा ... अब क्या बोलूँ, बताने में शर्म भी लग रही है ... यार तू भी मेरे से शर्माएगी तो फिर जीवन में करेगी क्या ... मेरा मतलब वैसे शर्माने से नहीं है ... तो फिर ... मैं जिस घर में काम करती हूँ मालिक की नजर मुझ पर लट्टू हो रही है जबकि मालकिन बिलकुल ऐश्वर्या राय जैसी सुन्दर है ... सारे मर्द एक जैसे होते हैं सुन्दरता-वुन्दरता का कोई लेना-देना नहीं ... मतलब ... मतलब बोले तो सीधा-सीधा है जहां नई औरत दिखी बस लार टपकना शुरू, बोले तो एकिच्च काम ... आजकल तो हम काम वाली बाईयों पर भी खूब मेहरवान होने लगे हैं ...
... हाँ देखा नहीं वो फिल्मस्टार कैसे काम वाली बाई के रेप में अन्दर हो गया था ... हाँ यार सच बोलती तू, यार ये बता अपुन लोगों में उन्हें क्या दिखता है जो खूबसूरत बीबीयों को छोड़ हम पर लार टपकाने लगते हैं ... ये बता पिछले महीने तेरा खसम पड़ोस की औरत संग मुंह काला किया था वो क्या तेरे से ज्यादा खूबसूरत है, बता बता ... याद मत दिला वो दिन, जी तो चाह रहा था कि साले को हंसिये से काट डालूँ, पर बच्चों का मुंह देख कर रह गई ... वोइच्च हाल मेरे खसम का भी है, अब क्या करें मजबूरी है ...
... यार शिल्पी मेरा मन डोल रहा है ... बोले तो ... लगता है अपना सारा जीवन ऐसे ही काम करते गुजर जाएगा, क्यों ना कुछ नया सोचा व करा जाए ... बोले तो ... वो एक पिक्चर देखेला था अपुन दोनों, जिसमें सेठ का दिल नौकरानी पे आ गया था और चोरी चोरी सेठ सेठानी से ज्यादा नौकरानी को प्यार करता था, क्या ठाठ-वाठ हो गए थे उसके ... हाँ याद है, कुछ उसी तरह का मन डोल रहा है क्या ... यार ठीक ठीक वैसा तो नहीं, पर मन हिल-डुल रहा है ...
... बोल तो सही रही है अपुन लोग तो जगह जगह काम करते आ रहे हैं और देख भी रहे हैं कि हर घर में कुछ-न-कुछ काला-पीला तो हो ही रहा है ... बात तो सच बोलती तू , साले खसम लोग भी तो अब भरोसे के नहीं रहे फिर क्यों अपुन लोग "सती सावित्री" बने बैठे हैं ... पर एक बात और मन में उमड़-घुमड़ रही है ... बता क्या ... जब ये साले खूबसूरत बीबी के नहीं हो रहे वे अपुन लोग के कैसे हो सकते हैं और कितने दिन के लिए ... बात में दम है, शायद एक-दो दिन ... जब तक चढ़ने का मौक़ा नहीं मिल जाता, जहां चढ़ने को मिला फिर अपनी "कुत्ते" वाली औकात पर आ जायेंगे, इसकी-उसकी सूंघते ... फिर क्या करें, कोई तो उपाय होगा ... उपाय - वुपाय कुछ नहीं, बस दो-चार बार चढ़ने-उतरने का जोखिम उठाना पडेगा, हो सकता है इस जोखिम से कोई सच्चा दिलदार आशिक मिल जाए और अपनी भी ऐश हो जाए ... जोखिम, वो भी चढ़ने-उतरने का ... क्या फर्क पड़ता है शायद अपनी भी टीना और शिल्पा की तरह निकल पड़े !!!
16 comments:
क्या फर्क पड़ता है शायद अपनी भी टीना और शिल्पा की तरह निकल पड़े !!!
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व्यंग्य कमाल का है ......और हम हो गए आपके 115 वें समर्थक ...शुभकामनायें
सपाट व्यंग।
और टीना व शिल्पा जैसे नहीं भी निकलें तो कुछ दिन तो ऐश से गुजर ही जाएंगे ।
आज घर घर की स्थिति को उजागर करती लघु कथा ..विचारणीय ...
@ केवल राम
... shukriyaa ji ... aapko bhee shubhakaamanaayen !!!
COMMENT OF THA DAY......KEWAL RAM
BEST POST OF THE DAY........SHRI MAAN UDAY JI
पतन की ओर उन्मुख है समाज
सचमुच आपकी कलम से निकला है बेहतरीन कडुवा सच......
SACH HAI YE EK "KADWA SACH"
महीन धार मारी है आज। जय हो।
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मोबाइल चार्ज करने की लाजवाब ट्रिक्स।
vande matram uday ji.........
behtreen or teekhaa vyang
vicharneey vyng .
सटीक व्यंग्य! विचारणीय प्रश्न।
नमस्कार जी
बहुत खूबसूरती से लिखा है.
जी नही सभी कामवालियां भी ऎसी नही होती, यह भी अपनी इज्जत पर आने पर जान देने को तेयार हे, वेसे यह माडल हीरोईन ओर भी कई लोग यह सब पैसे के लिये नही करते? गरीब हे तो क्या हुआ, इन की भी इज्जत होती हे....
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