खुद पर
कि मैंने तुम्हें क्यों देखा प्यार से !
जवकि मुझको थी खबर
कि तुम हर पल कुछ न कुछ
गुनाह की रणनीति बना रहे हो !
न सिर्फ बना रहे हो
वरन उन्हें अंजाम भी दे रहे हो !
क्यों कर फिर भी मैं तुम्हें
यूं ही देखती रही प्यार से !
क्यों रोका नहीं खुद को
जवकि थी खबर मुझको, कि तुम -
एक गुनाहगार हो, कातिल हो !
तुम्हारे न सिर्फ हांथों पर
वरन जेहन में भी खून के छींटे हैं !
फिर भी यूं ही मैं तुम्हें पल पल
देखती रही, घूरती रही !
शायद इसलिए कि मैंने ही तुम्हें
रोका नहीं था प्रथम बार !
जब तुम बेख़ौफ़ जा रहे थे
एक अनोखा खून ... गुनाह करने
मेरी इन्हीं नज़रों के सामने-सामने !
रोक लेती तो शायद
आज, तुम्हारे रक्तरंजित हाथ
मुझे छू नहीं रहे होते !
पर ये भी एक अनोखा सच है
कि तुमने जो प्रथम गुनाह किया
वो मेरे ही लिए किया था !
मेरी रूह को,
नहीं तो, मैं उसी दिन मर गई होती
जब उस दरिन्दे ने मेरी आबरू
न सिर्फ लूटी, वरन तार तार की थी !
उस दिन, उस दरिन्दे के खून से सने
हाँ ये सच है, कि तुम एक खूनी-हत्यारे हो
प्रथम क़त्ल के बाद भी तुम
क़त्ल पे क़त्ल करते रहे
और मैं तुम्हें प्यार पे प्यार !
क्यों, क्योंकि तुम कातिल होकर भी
मेरी नज़रों में बेगुनाह थे !
क्योंकि, तुमने क़त्ल तो किए
पर इंसानों के नहीं, दरिंदों के किए
वे दरिंदें जो खुश हुआ करते थे
लूट कर, नारी की आबरू !
हाँ ये भी एक अनोखा सच है
कि लुटती नहीं थी आबरू नारी की
वरन हो जाता था क़त्ल उसका
उसी क्षण, जब उसकी आबरू -
कि मैंने तुम्हें क्यों देखा प्यार से !
जवकि मुझको थी खबर
कि तुम हर पल कुछ न कुछ
गुनाह की रणनीति बना रहे हो !
न सिर्फ बना रहे हो
वरन उन्हें अंजाम भी दे रहे हो !
क्यों कर फिर भी मैं तुम्हें
यूं ही देखती रही प्यार से !
क्यों रोका नहीं खुद को
जवकि थी खबर मुझको, कि तुम -
एक गुनाहगार हो, कातिल हो !
तुम्हारे न सिर्फ हांथों पर
वरन जेहन में भी खून के छींटे हैं !
फिर भी यूं ही मैं तुम्हें पल पल
देखती रही, घूरती रही !
शायद इसलिए कि मैंने ही तुम्हें
रोका नहीं था प्रथम बार !
जब तुम बेख़ौफ़ जा रहे थे
एक अनोखा खून ... गुनाह करने
मेरी इन्हीं नज़रों के सामने-सामने !
रोक लेती तो शायद
आज, तुम्हारे रक्तरंजित हाथ
मुझे छू नहीं रहे होते !
पर ये भी एक अनोखा सच है
कि तुमने जो प्रथम गुनाह किया
वो मेरे ही लिए किया था !
मेरी रूह को,
तुम्हारे उस गुनाह से
न सिर्फ सुकूं, वरन नया जीवन भी मिला !
न सिर्फ सुकूं, वरन नया जीवन भी मिला !
नहीं तो, मैं उसी दिन मर गई होती
जब उस दरिन्दे ने मेरी आबरू
न सिर्फ लूटी, वरन तार तार की थी !
उस दिन, उस दरिन्दे के खून से सने
तुम्हारे हांथों से मुझे
खुशबू और जीने की एक नई राह मिली !
हाँ ये सच है, कि तुम एक खूनी-हत्यारे हो
पर तुम्हारे गुनाह
मुझे गुनाह नहीं, इन्साफ लगते हैं !
मुझे गुनाह नहीं, इन्साफ लगते हैं !
प्रथम क़त्ल के बाद भी तुम
क़त्ल पे क़त्ल करते रहे
और मैं तुम्हें प्यार पे प्यार !
क्यों, क्योंकि तुम कातिल होकर भी
मेरी नज़रों में बेगुनाह थे !
क्योंकि, तुमने क़त्ल तो किए
पर इंसानों के नहीं, दरिंदों के किए
वे दरिंदें जो खुश हुआ करते थे
लूट कर, नारी की आबरू !
हाँ ये भी एक अनोखा सच है
कि लुटती नहीं थी आबरू नारी की
वरन हो जाता था क़त्ल उसका
उसी क्षण, जब उसकी आबरू -
हो रही होती थी, तार तार दरिन्दे के हांथों !!
17 comments:
गहन भाव से भरी, सुन्दर रचना....साधुवाद.
क्यों, क्योंकि तुमने क़त्ल तो किए
पर इंसानों के नहीं, दरिंदों के किए
वे दरिंदें जो खुश हुआ करते थे
लूट लूट कर नारी की आबरू !
हाँ ये भी एक अनोखा सच है
कि लुटती नहीं थी आबरू नारी की
वरन हो जाता था क़त्ल उसका
उसी क्षण जब आबरू उसकी
हो रही होती थी तार तार दरिन्दे के हांथों !
marmik kavita
कविता में गहराई है ! कलम में दम है !
सशक्त रचना ।
कानून अपना काम करे तो अच्छा है ।
सुन्दर रचना
मगर यह शिकायत क्यूं ?
अच्छी पोस्ट !
क्या कहा जाये...
अलग विषय, अलग प्रस्तुतीकरण।
एक अत्यंत ही मार्मिक अभिव्यक्ति।
behatreen , saarthak abhivyakti.
हाँ ये सच है कि तुम एक खूनी
हत्यारे हो, पर तुम्हारे गुनाह
मुझे गुनाह नहीं, इन्साफ लगते हैं !
जिनका सब कुछ लूट लिया जाये वो इन्साफ इसी तरह करते हैं .....
चाहे वो रास्ता गलत ही क्यों न हो .....
सुंदर भाव लिये हे आप की यह कविता, धन्यवाद
एक अत्यंत ही मार्मिक प्रस्तुतीकरण।
कमाल की प्रस्तुति ....जितनी तारीफ़ करो मुझे तो कम ही लगेगी
Behad sashakt rachana!
vande matram uday ji
behad hi dhardar or tej hai aapki kalam
behtreen behtreen
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