चलो बेच दें, बढ़ो बेच दें
चलो आज कुछ नया बेच दें !
तब तब, जब जब जी ने चाहा
कुछ न कुछ हमने बेचा है !
मान, ईमान, स्वाभिमान, तो
हम कब का ही बेच चुके हैं !
जिस्म-आबरू, बेच बेच के
खूब है हमने माल बटोरा !
गोला, बारूद, बंदूकों, के सौदे से
स्वीस बैंक में, है खाता खोला !
खेत, खलियान, और किसान का
सौदा पक्का कर के बैठे हैं !
बार्डर की भी, है डील चल रही
तब तक, कुछ न कुछ बेच दें !
चलो बेच दें, बढ़ो बेच दें
चलो आज कुछ नया बेच दें !
क्या अपना, क्या तुपना देखें
लाल किला और ताज बेच दें !!
19 comments:
आप सोच रहे हैं, भाई लोग निपटा चुके होंगे..
क्या अपना, क्या तुपना देखें
चलो लालकिला और ताज बेच दें !!! ...kahi pahale hi bik to nahi gaya...?bahut badhiya kataksh system par.
बिक गया जी।
Bahut khoob .... jarur bikega...
gr8 sach
अगला इन्ही का नम्बर है।
:) बंटी बबली ने तो ताज बेच ही दिया है ...
बहुत अच्छा कटाक्ष
बस वही बाकी रह गया है।
जब तक हम आप जात ,पांत , धर्म , छेत्र के आधार पर अपना मत देते रहेंगे यही स्थिति रहेगी
बेहतरीन कटाक्ष
dabirnews.blogspot.com
sachhi batati ek achhi rachna
Jo kharidega wo to jarur marega
काश, मेरा बस चलता तो मैं दस जंपथ बेच देता !
नोट: यह टिपण्णी बदले में टिपण्णी पाने की गरज / उम्मीद से नहीं की गई है
वाह क्या कटाक्ष है
वैसे डील चल रही होगी
दुनिया की मंडी मे सब कुछ बिकाऊ है। आज की दुर्दशा पर मन का अक्रोश शब्दों मे अच्छे से महसूस किया जा सकता हौइ। अच्छी लगी रचना। शुभकामनायें।
अरे ये अभी तक बचे हैं क्या?
सही है जी, बेच बाच कर साईड करो, न तो कोई और बेच देगा अगर अब तक सौदा नहीं हुआ तो:
धारदार भाला चुभोया है आपने...बहुत ही करारा व्यंग्य।
चलो बेच दें, बढ़ो बेच दें
चलो आज कुछ नया बेच दें !
यह कविता बड़ी अच्छी लगी .
jabadast vyang !
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