हम भ्रष्ट हैं, भ्रष्ट रहेंगे
हमें भ्रष्ट ही रहने दो
क्यों इमानदार बनाने पे तुले हो
क्या हमारा जीना तुम्हें
अच्छा नहीं लग रहा
आखिर हमने तुम्हारा बिगाड़ा क्या है !
ऐसा क्या कर दिया
जो तुम हमारे पीछे ही पड़ गए
तुम्हारे दो-चार पैसे क्या खा लिए
रोटी का टुकड़ा क्या खा लिया
अब हमें जाने भी दो
तुम्हारी जान तो नहीं ले ली !
और ना ही तुम्हारा
चैन हराम किया है
अब थोड़ा-बहुत तुम्हारे हिस्से का
गुप-चुप ढंग से क्या खा-पी लिया
तो क्या तुम अब
हमारी जान ही ले लोगे !
तुम तो दयालु-कृपालु हो
माफ़ कर देने से
तुम्हारा क्या बिगड़ जाएगा
ज्यादा-से-ज्यादा यह ही होगा
तुम पिछड़े हो, पिछड़े ही रह जाओगे
तुम्हारा कुछ जाने वाला तो है नहीं !
पर तुम्हारे माफ़ कर देने से
हमें एक नया जीवन मिल जाएगा
हम कसम खाते हैं, पैर छूते हैं
अब दोबारा भ्रष्टाचार नहीं करेंगे
जो कुछ कमाया-धरा है
उससे ही हम और हमारी पुस्तें ... !!!
11 comments:
वाकई बड़े अफसोस की बात है...
bahut achcha vyang!
किसे के दृढ़निश्चय को क्यों तोड़ना, यूं ही, मनोविनोद के लिये।
:)
पर तुम्हारे माफ़ कर देने से
हमें एक नया जीवन मिल जाएगा
हम कसम खाते हैं, पैर छूते हैं
अब दोबारा भ्रष्टाचार नहीं करेंगे
जो कुछ कमाया-धरा है
उससे ही हम और हमारी पुस्तें ... !!!
waah.....kya baat kahi hai
वाकई बड़े अफसोस की बात है... शाशाक्त व्यंग्य !
जो कुछ कमाया-धरा है
उससे ही हम और हमारी पुस्तें ... !!!
ha ha ha
sateek vyang
रोचक रचना अभिव्यक्ति ......
बहुत सुन्दर व्यंग्य !
सटीक व्यंग्य।
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