Monday, November 22, 2010

हमारी जान ही ले लोगे !

हम भ्रष्ट हैं, भ्रष्ट रहेंगे
हमें भ्रष्ट ही रहने दो
क्यों इमानदार बनाने पे तुले हो
क्या हमारा जीना तुम्हें
अच्छा नहीं लग रहा
आखिर हमने तुम्हारा बिगाड़ा क्या है !

ऐसा क्या कर दिया
जो तुम हमारे पीछे ही पड़ गए
तुम्हारे दो-चार पैसे क्या खा लिए
रोटी का टुकड़ा क्या खा लिया
अब हमें जाने भी दो
तुम्हारी जान तो नहीं ले ली !

और ना ही तुम्हारा
चैन हराम किया है
अब थोड़ा-बहुत तुम्हारे हिस्से का
गुप-चुप ढंग से क्या खा-पी लिया
तो क्या तुम अब
हमारी जान ही ले लोगे !

तुम तो दयालु-कृपालु हो
माफ़ कर देने से
तुम्हारा क्या बिगड़ जाएगा
ज्यादा-से-ज्यादा यह ही होगा
तुम पिछड़े हो, पिछड़े ही रह जाओगे
तुम्हारा कुछ जाने वाला तो है नहीं !

पर तुम्हारे माफ़ कर देने से
हमें एक नया जीवन मिल जाएगा
हम कसम खाते हैं, पैर छूते हैं
अब दोबारा भ्रष्टाचार नहीं करेंगे
जो कुछ कमाया-धरा है
उससे ही हम और हमारी पुस्तें ... !!!

11 comments:

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

वाकई बड़े अफसोस की बात है...

Anjana Dayal de Prewitt (Gudia) said...

bahut achcha vyang!

प्रवीण पाण्डेय said...

किसे के दृढ़निश्चय को क्यों तोड़ना, यूं ही, मनोविनोद के लिये।

Apanatva said...

:)

रश्मि प्रभा... said...

पर तुम्हारे माफ़ कर देने से
हमें एक नया जीवन मिल जाएगा
हम कसम खाते हैं, पैर छूते हैं
अब दोबारा भ्रष्टाचार नहीं करेंगे
जो कुछ कमाया-धरा है
उससे ही हम और हमारी पुस्तें ... !!!
waah.....kya baat kahi hai

अरुण चन्द्र रॉय said...

वाकई बड़े अफसोस की बात है... शाशाक्त व्यंग्य !

S.M.Masoom said...

जो कुछ कमाया-धरा है
उससे ही हम और हमारी पुस्तें ... !!!
ha ha ha

ZEAL said...

sateek vyang

समय चक्र said...

रोचक रचना अभिव्यक्ति ......

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" said...

बहुत सुन्दर व्यंग्य !

vandana gupta said...

सटीक व्यंग्य।