Monday, November 1, 2010

जगमग जगमग है दीवाली !

दीवाली की शाम निराली
फटाकों की धूम निराली
पोशाकों की शान निराली
मीठी मीठी, मीठी वाणी
रंगोली से सजे हैं आँगन
चौखट चौखट फूल सजे हैं
आँगन आँगन दीप जले हैं
दीप जले हैं, दीप जले हैं
जगमग जगमग है दीवाली !

7 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

वाह, बहुत मधुर।

kshama said...

Badi khushnuma kavita likhi hai...!

राज भाटिय़ा said...

अति सुंदर रचना धन्यवाद

Unknown said...

Yeah...Diwali used to be a gr8 fun!!

Apanatva said...

badiya..

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

सुंदर रचना श्याम भाई

Dr.J.P.Tiwari said...

दीपावली मनाने का ढंग आज भव्यता और धन-प्रदर्शन की अभिरुचि ने ले रखा है. इस भोंडा प्रदर्शन ने दीपावली की महिमा बधाने की बजाय घटाई है. अंतर के उमंग को, अंतर की ज्योति को, अंतरात्मा के घर को यदि ज्योति से जगमगा दिया जाय तो यही दीपावली सर्वश्रेष्ठ दीपावली है. बारूद के पटाखे छोड़ना, पर्यावरण को दूषित करना, बुद्धिमानी नहीं. इस विन्दु पर बुद्धिजीवी वर्ग को ही बार-बार चिंतन करने की आवश्यकता है.