Monday, October 25, 2010

नक्सली चहरे में छिपा आतंकी चेहरा !

नक्सली विगत कुछेक वर्षों से एक ही नीति अर्थात सिद्धांत पर कार्य कर रहे हैं वो नीति है मारकाट, ह्त्या, लूटपाट, अटैक, ब्लास्ट, बगैरह बगैरह, दूसरे शब्दों में कहा जाए तो उन्हें इसी नीति पर कार्य करने की महारत हासिल है, क्योंकि वे सकारात्मकता रचनात्मकता से काफी दूर हैं यह कहना अतिश्योक्तिपूर्ण नहीं होगा कि उनका मकसद ही विनाशात्मक है जब नक्सलवाद का मुख्य मकसद विनाशात्मक है तो उनसे रचनात्मकता सकारात्मकता की उम्मीद रखना खुद के साथ बेईमानी करना ही प्रमाणित होगा, खैर इस व्यवहार से नक्सली मंसूबे स्वमेव जाहिर हो जाते हैं किन्तु समस्या नक्सलियों के विनाशकारी रबैय्ये से नहीं है समस्या परिलक्षित हो रही है उनके बदलते व्यवहार से, बदलते व्यवहार से तात्पर्य उनके सिद्धांतों में अमूल-चूल परिवर्तन से है, सीधे शब्दों में कहा जाए तो जहां नक्सलियों की नीति सदा से मारकाट ह्त्या की रही है वहां दूसरी ओर पुलिस कर्मियों को किडनेप करना फिर उन्हें छोड़ देना, यह व्यवहार तरह तरह के संदेहों अथवा सम्भावनाओं को जन्म देता है ! ये और बात है कि नक्सली शुभचिंतकों समर्थकों ने किडनेप किये गए पुलिस कर्मियों को छोड़ने हेतु गुहार लगाईं थी

नक्सलियों द्वारा पुलिस कर्मियों को किडनेप करना, जेल में बंद नक्सली साथियों को रिहा करने की शर्त पर पुलिस कर्मियों को छोड़ने की शर्त रखना, समयसीमा समाप्त होने के पश्चात पुन: समयसीमा बढ़ाना, फिर अंत में निशर्त बंधक पुलिस कर्मियों को रिहा कर देना, नक्सलवाद का ये कौनसा चेहरा है जो पहले तो पुलिस कर्मियों का किडनेप करते हैं और बाद में निशर्त छोड़ देते हैं !विगत दिनों बिहार प्रांत में चार पुलिस कर्मियों का नक्सलियों ने किडनेप किया जिसमे से एक लुकास टेटे की ह्त्या कर दी थी तथा दूसरी ओर तीन कर्मी सब इन्स्पेक्टर रुपेश कुमार अभय यादव तथा हवलदार एहसान खान की बाद में निशर्त रिहाई कर दी ठीक इसी प्रकार छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले में भी नक्सलियों ने चार पुलिस कर्मियों को किडनेप किया जिन्हें भी निशर्त छोड़ दिया

हालांकि पूर्व में नक्सलियों ने अगुवा किये गए पुलिस कर्मियों को छोड़ने के एवज में जेल में बंद अपने नक्सली साथियों की रिहाई की मांग रखी थी किन्तु बाद में पुलिस कर्मियों को निशर्त रिहा कर दिया गया लगभग दस दिनों तक ये पुलिस कर्मी नक्सलियों के बंधक रहे, हालांकि वामपंथी विचारधारा के लोकप्रिय कवि बाराबारा राव ने भी इन्हें छोड़ने के लिए अपील की थी और कहा था की अपनी शर्तें मनवाने का यह तरीका उचित नहीं हैगौरतलब बात यह है की इस बार नक्सलियों ने अपनी शर्त समय सीमा को नजर अंदाज करते हुए समय सीमा गुजर जाने के बाद निशर्त पुलिस कर्मियों को रिहा कर एक नई मिशाल पेश की है, ये बात और है की इसके पीछे नक्सलियों के कुछ--कुछ मंसूबे जरुर होंगे ! ठीक इसी प्रकार बिहार में भी नक्सलियों ने पुलिस कर्मियों को निशर्त रिहा करते समय कहा था कि वे मानव अधिकार समर्थकों, बुद्धिजीवियों शुभ चिंतकों के आग्रह पर इन्हें छोड़ रहे हैंसमस्या पुलिस कर्मियों के किडनेप होने तथा निशर्त रिहा हो जाने को लेकर नहीं है समस्या नक्सली सोच व्यवहार में बदलाव की है, इसे हम कुछ पल के लिए खुशी का मंजर मान सकते हैं कि नक्सलियों ने अगुवा किये पुलिस कर्मियों को निशर्त रिहा कर दिया !

किन्तु यहाँ पर मेरा मानना है कि नक्सलियों का यह व्यवहार नजर अंदाज करने योग्य कतई नहीं हैं, क्योंकि विगत दिनों ही नक्सलियों ने काश्मीर में चल रहे जिहादी आतंकवाद के समर्थन में बंद का आव्हान किया थाअभी तक नक्सलियों को अंदरुनी रूप से आतंकवादियों के सपोर्ट की बात परिलक्षित होती रही है आधुनिकतम हथियारों से नक्सलियों का लैस होना इस बात की प्रमाणिकता है कि नक्सली आतंकी एक-दूसरे के पूरक हैं, साथ ही साथ आतंकी समर्थन में बंद का आव्हान कर नक्सलियों ने अपने मंसूबे खुल्लम-खुल्ला तौर पर जाहिर कर दिए हैं ! नक्सलियों का दिन-व्-दिन विस्तार होना तथा आतंकवादियों के समर्थन में बंद का आव्हान करना, अपने आप में नक्सली मंसूबे जाहिर हो रहे हैं नक्सली चहरे के भीतर आतंकी चेहरा परिलक्षित हो रहा है यदि अब भी केंद्र राज्य सरकारें एक दूसरे को तकते रहेंगी तो यह कहना अतिश्योक्तिपूर्ण नहीं होगा कि अंजाम बेहद खतरनाक ही सामने आयेंगे !

12 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

समानान्तर सरकार चला रहे हैं नक्सली।

arvind said...

bikul sahi baat ...aapse 100% sahamat.

arvind said...

bikul sahi baat ...aapse 100% sahamat.

Sanjeet Tripathi said...

sehmat hun

Unknown said...

Yes, the problems with such groups are their lack of an agenda to follow . they start with good objectives but across transition of leadership they loose the very reason of their presence. they surely need a framework if they want to find a place in our society.

राज भाटिय़ा said...

यह सब किस के बल बुते पर हो रहा हे? हमारे ही कुछ नेताओ के, वरना भारत इतना भी कमजोर नही जो इन लोगो से डर जाये

गौरव शर्मा "भारतीय" said...

आपसे पुर्णतः सहमत.......

kshama said...

Naxalwaad nisshank,aatankwaad ho gaya hai!

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

सरकार और नक्सली,
एक ही सिक्के के दो पहलू... गरीबों के लिये.

Anjana Dayal de Prewitt (Gudia) said...

Very interesting post... here is my learning from the experiences in the Naxal affected villages:

http://anjana-prewitt.blogspot.com/2010/10/who-will-take-first-step-towards-peace.html

Respectfully.

अशोक कुमार मिश्र said...

नक्सलियों की कहानी सच्चाई के लिहाफ में झूठ की तरह नजर आती है उनका सच झूठ में लिप्त हुआ नजर आता है वो अच्छाई के नाम पर बुरा कर रहे हैं ......

सुधीर राघव said...

समाज में हिंसा तेजी से बढ़ रही है, पहले सिर्फ यह राक्षसों का काम थी मगर अब विचारधारा के नाम पर भी हिंसा की जाती है, शर्मनाक है।