Saturday, October 30, 2010

रौशनी

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जहां उजाले-ही-उजाले हैं,
वहां 'दीप' बन -
टिमटिमाने से बेहतर है
चलो चलें, कहीं अंधेरों में,
रौशनी बन -
आँगन आँगन जगमगा जाएं !
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9 comments:

संजय भास्‍कर said...

उदय जी
"ला-जवाब" जबर्दस्त!!

संजय भास्‍कर said...

चलो चलें, कहीं अंधेरों में, रौशनी बन आँगन आँगन जगमगा जाएं !
.........बहुत खूब, लाजबाब !

प्रवीण पाण्डेय said...

बहुत सुन्दर भाव, सच में ऐसी जगह ही चलते हैं।

राज भाटिय़ा said...

लजावाव जी बहुत सुंदर. धन्यवाद

दिगम्बर नासवा said...

Sach klaha ... uttam bhaav hai man ke ..

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत खूबसूरत सोच ...

मनोज कुमार said...

उत्तम विचार।

डॉ टी एस दराल said...

सिर्फ दो पंक्तियों में बहुत बड़ी बात कह दी उदय जी ।
बढ़िया ।

आपका अख्तर खान अकेला said...

shi khaa uday bhayi jhana zrurt he mdd vhin milnaa chaahiye . akhtar khan akela kota rajsthan