दाने दाने के लिए, भटकते देखा है !
धूप रही, बरसात रही
पर गरीब को
पीठ पे बोझा, ढोते देखा है !
आज गरीबी को, खुद की हालत पे
गुमसुम गुमसुम, रोते देखा है !
दो रोटी के
चार टुकडे कर
बच्चों को, पेट भरते देखा है !
कहाँ दवा
दुआओं पर ही, बच्चों का बुखार
ठीक होते देखा है !
घाव नहीं, पर भूख से
बच्चों को
बिलखते देखा है !
बारिस से, भीग गया कमरा
दीवालों से सटकर
गरीबी को, झपकियाँ लेते देखा है !
भूख बला थी, लोगों को
जीते जी
भूख से मरते देखा है !
और बचा था, कुछ देखन को
तो जिन्दों को
मुर्दों-सा, जीवन जीते देखा है !
आज गरीबी को
सड़क पर, दम तोड़ते देखा है !!
भूख से मरते देखा है !
और बचा था, कुछ देखन को
तो जिन्दों को
मुर्दों-सा, जीवन जीते देखा है !
आज गरीबी को
सड़क पर, दम तोड़ते देखा है !!
20 comments:
बहुत सुन्दर रचना
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अकेला कलम
jnaab bhaai jaan kdve sch men duniyaa ki hqiqt jin alfaazon men aapne pesh ki hen voh schchaayi is desh ki tqdir he or ise hi hm bdlen yhi bs hmaari aek aag hona chaahiye jo ho bhukhaa use mile roti jo ho nngaa use mile kpdaa or jo ho beghr use mile ghr bs ab hmaari yhi aek aavaaz hona chaahiye. akhtar khan akela ktoa rajsthan
दो रोटी के
चार टुकडे कर
बच्चों को पेट
भरते देखा है
sach kaha.
घाव नहीं
पर भूख से
बच्चों को
बिलखते देखा है
बहुत खूब रचना है साब!!
और बचा था
कुछ देखन को
तो जिन्दों को
मुर्दों सा
जीते देखा है
Saaree rachana dard se sarbaar hai.Kaisa bhayanak saty ujagar hua hai.
मार्मिक पक्ष त्यक्तमना समाज का।
मार्मिक सत्य ।
सुन्दर लेखन ।
अच्छी कविता
सुन्दर रचना.
बहुत ही मार्मिक....
बहुत ही भावपूर्ण रचना है!
ज़रा यहाँ भी नज़र घुमाएं!
राष्ट्रमंडल खेल
Sundar...
.
आज गरीबी को
खुद की हालत पे
गुमसुम गुमसुम
रोते देखा है..
Beautiful presentation of poverty !
.
garibi ..ek abhishap hai ...magar ..aapki kavita padhkar ..shaayad kuch log ...sahanubhuti rakhe garibo se
aap ki sabdon ki jaal mein main ulajh ki rah jaata hoonn kuch kahna to chaha per dimag ne saath dena band kar diya
Bohot khub bandhu
नेताओं को राजनीति गरीबों पे करते देखा।
बहुत ही सुन्दर रचना
बहुत ही सुन्दर रचना
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