"चलो अच्छा हुआ, जो तुम मेरे दर पे नहीं आए / तुम झुकते नहीं, और मैं चौखटें ऊंची कर नही पाता !"
Wednesday, June 2, 2010
... ब्लागिंग अपने अंतिम पडाव पर है ???
ब्लागजगत में घमासान मच रहा है ... क्यों, किसलिये ... ब्लागर बे-वजह तो घमासान नहीं कर रहे होंगे ... कुछ-न-कुछ तो अवश्य ही लाभ छिपा होगा ... हो सकता है, पर क्या लाभ होगा ? .... इस विषय पर चर्चा-परिचर्चा की आवश्यकता महसूस हो रही है ... तो चलो शुरु किया जाये चर्चा-परिचर्चा ..... क्या फ़र्क पडता है चर्चा-परिचर्चा से ... कुछ तो नतीजा निकलेगा ही .... पर अब कौन शुरु करे चर्चा-परिचर्चा ..... अब तो लोग ब्लागिंग से भी घवराने लगे हैं ... कहीं ऎसा न हो कि ब्लागिंग से बुद्धिजीवी वर्ग पलायन करने लगे .... यह भी संभव है ... आज के समय में कौन चाहता है लफ़डे में पडना ... वो भी बे-वजह के लफ़डे में ... पर ऎसा क्यों हो रहा है ... कहीं ये बर्चस्प की लडाई तो नहीं है ... हो भी सकती है ... बर्चस्प की लडाई से कौन अछूता रहा है ... राजा-महराजा, रंक-फ़कीर, अमीर-गरीब, ज्ञानी-मूर्ख, छोटे-बडे ... सभी तो इस लडाई के शिकार हुये हैं ... फ़िर ब्लागर किस खेत की मूली है जो इस लडाई से अछूता रह जाये ... संभव या असंभव ... कोई उत्तर नहीं ... कहीं ऎसा तो नहीं ब्लागिंग अपने अंतिम पडाव पर है ???????
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28 comments:
chhodiye Uday ji...bahut vishay hain...bharat yunhi jal raha hai...pehle wahi bujha lete hain milke...
नहीं.
ब्लागिंग अभी शैशवाकाल में है और शैशवाकाल में यह सब होता ही है
अभी थोडा समय बाकी है...
हिंदी ब्लागिंग तो अभी शैशव काल में है।
मैने यही पढा सुना है अभी तक्।
...अगर ये शैशव काल है तो युवा व प्रौढ काल क्या होगा ये चिंतनीय विषय है .... ठीक है आप सभी से सहमत हैं ... आगे आगे देखते हैं होता है क्या ... या फ़िर हुई है वही जो राम रची राखा ...!!!
उदय जी ,
आभासी दुनिया में वर्चस्व की लडाई । उस दुनिया में जहां रोज जाने कितने लोग जुडते हैं और कितने ही इसे छोड भी देते हैं और फ़िर किस बात का वर्चस्व , कहां पर , इस ब्लोगर नामक भूस्वामी ने अभी जो स्थान उपलब्ध करा रखा है सब उसी का उपयोग अपनी अपनी सोच और क्षमता के अनुरूप कर रहे हैं । जिसके पास जो है वो उसे बो रहा है और उसे ही काट भी रहा है । ये दौर बहुत बार आए गए हैं , न तो इससे ब्लोग्गिंग , न ही हिंदी और न ही हिंदी ब्लोग्गिंग पर कोई शाश्वत प्रभाव पडता देखा है मैंने । हलचल जरूर ही कम ज्यादा और कभी दाएं बाएं तो कभी ऊपर नीचे की दिशा में होती रही है । हां अब पहले की तरह ये कहने की हिम्मत नहीं है कि , परिवार में जहां चार लोग होंगे बर्तन की तरह, खडकेंगे भी ..........जाने क्यों अब ये कहने का मन भी नहीं करता ।
अभी तो शो शुरू हुआ है।
क्या वर्चस्व और क्या प्रतियोगिता। ब्लोग खतम नही होगा। थक हारकर अवांछनीय विवाद, अवांछित ब्लोग लेखक ही यहां से विदा ले लेन्गे। और हाँ जो ज्यादा अपना मन खिन्न कर लेन्गे वे लोग्। बाकी सब ठीक है उदय भाई। वैसे आपने अच्छा किया विचार प्रकट करके।
लौंडे-लपाड़े कूद रहे हैं...
खेलन-कूदने के दिन हैं उनके...
कूदने-फांदने दीजिए...
थक-हार के कुछ दिनों बाद अपने आप शांत हो जाएंगे
हिंदी ब्लागिंग तो अभी शैशव काल में है। ...और राजीव तनेजा की बात से पूर्ण सहमत !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
घबराइये नहीं उदय जी, जिसके घर में जो संस्कार सिखाये गए वो उन्हीं की छाप यहाँ छोड़ रहे हैं और कुछ नहीं है.. आपने महात्मा और भंगी वाली कहानी तो सुनी ही होगी. लोग अपने फायदे के लिए यही भूल जा रहे हैं कि इससे हिंदी का या ब्लोगिंग का भी नुक्सान हो सकता है.. सबकी गिरेबां में उछल-उछल कर झाँक रहे हैं और अपनी कॉलर बंद करके खुद को देवता समझ रहे हैं.. यहाँ अब चुप रहने का मतलब डरपोक समझा जाने लगा है. जो लोग अपने से वरिष्ठों के नाम के आगे जी तक नहीं लगा सकते उनके माँ-बाप उनसे क्या उम्मीद करें. वो भूल रहे हैं कि कुछ लोगों को, कुछ पोस्टों को नीचे करके वो उनपर लोगों की नज़र नहीं पड़ने दें, ये तो संभव है पर विचारों को आने से रोक लेंगे क्या?? क्यों सिर्फ टिप्पणी पाने और सबकी नज़र में आने के लिए नए-नए दुष्चक्र रचे जा रहे हैं.. पर वो बन्धु इससे पहले अपने दिल से तो पूंछ लें कि सही कौन है और गलत कौन? क्या जैसा सलूक वो औरों के साथ कर रहे हैं वैसा ही उनके माता-पिता के साथ किया जाए तो वो बर्दाश्त कर सकेंगे? भारतीय संस्कृति को भूल खुद कलंक बनने की दिशा में अग्रसर हैं... अगर ये लोग अपनी ही पिछली १०-१५ पोस्ट खुद माँ सरस्वती को सच्चा मान साफ़ और निष्पक्ष दिल से पढ़ लें तो उन्हें अपने पर ही शर्म आ जायेगी कि वो कर क्या रहे हैं.. युवा शक्ति का ऐसा दुरूपयोग मैंने पहले कभी नहीं देखा.. इन स्वार्थी तत्वों देख क्या सोचते होंगे स्वामी विवेकानंद.. किस युवा का आह्वाहन किया था उन्होंने..
थक-हार के कुछ दिनों बाद अपने आप शांत हो जाएंगे
साहित्य जगत में क्या कम घमासान है तो क्या साहित्य जगत चुक गया? घमासान है तो एक दूसरे को समझने की ललक भी है। सभी से सीख मिलती है। ऐसा कौन सा विषय है जहाँ घमासान नहीं है? चिन्ता ना करें, बस लिखते रहें।
दीपक की बात से सौ फीसदी सहमत हूं।
इसके साथ मेरा कहना है कि मजाक मस्ती अपनी जगह है लेकिन जब आप लिखे तो कुछ तो बात होनी चाहिए...
निराश होने की जरूरत नहीं है एक दिन सब कुछ बदलेगा अपन इसी उम्मीद पर कायम हैं।
mujhe to yahi lagta he ki hindi blogging apne achhe star par he
सब अच्छा ही होगा।
काम कीजिये अपना ..कोई अंतिम पड़ाव वडाव पर नहीं है भई !
हमने समीर लाल जी के साथ मिलकर गर्मी पर घमाशान छेड़ दिया है ।
देखिये और लुत्फ़ उठाइये ।
आईये और लुत्फ उठाईये बारिश का..आप भी कहाँ लगे हैं. :)
मेरा ये मानना है कि हिंदी ब्लोगिंग काफी अच्छे स्थान पर है! हम सब ब्लोगिंग के माध्यम से मित्रों के रचनाएँ, लेख और बहुत सारी दिलचस्प घटनाएँ पढ़ते हैं जो हमें बेहद पसंद है!
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chinta mat kijiye har naye kaam mein thodi bahut adchanein to aati hi hain thode time baad sab thik ho jayega.
uday ji,
ladai kyu hoti hai apko to ye pata hi hoga, jab jab hoi dharm ke......,ab yahan to bhagvan aege nahi. fir anyay sahna pap hai. islie is annyay se mukti pane ke lie aisa kar rahe hai.
kuchh log apne ko senior bloggar kahte hai. apne senior hone k mad me aakar, junior k sath annyay karna achchi bat nahi hai. islie buddo, chaplusho gutbajo ko javab dene k lie ham age ae hai.
दीपक 'मशाल' ओर अजय झ की टिपण्णी से सहमत है, हम जेसे संस्कार मां बाप से पाते है, वेसे ही करते है.... यानि हम अपने मां बाप के आचरण के बारे सब को बताते है
bloging nahi, log antim padaav par hai. blogin to abhi shuroo ho rahi hai. baarh jab aatee hai, to bahut-saa kacharaa bhi bah kar aa jataa hai. usake baad svaksh pani hi rahata hai. yah sankraman kaal hai. chinta kee baat nahi. achchhe log they, achchhey log hai, achchhe log rahenge.
इसे शायद शैशवावस्था भी नहीं कहेंगे..........हमारी नज़र में तो ये ब्लॉग की भ्रूण हत्या करने का प्रयास है.................अब बाकी और विशेषज्ञ बताएँगे कि ये क्या है?
जय हिन्द, जय बुन्देलखण्ड
अभी तो शुरुवात है आगे आगे देखिये होता है क्या
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