तेरी चाह्त
कि तू बगैर मेरे
जी नही सकता !
पर तेरी चाहत
दिल में ज्यादा है
या आंखों में
समझ नहीं पाती !
तेरी आंखें चुपके से
जब निहारती हैं
मेरे वक्षों को
तब वक्ष मेरे
खुद - व - खुद
उभर जाते हैं !
हां जानती हूं
जब विदा होती हूं
तब तेरी आंखें
कहां होती हैं
तेरी आंखों की मस्ती में
कमर मेरी
न चाह कर भी
हिरणी सी बलख जाती है !
हां सब जानती हूं
मैं एक लडकी हूं !!
( इस रचना में एक लडकी के मनोभाव को पढने की कोशिश की है ... पर शायद मुझे कुछ कमी सी लग रही है ... पर क्या ??? )
21 comments:
बहुत बढिया मनोभाव पिरोए हैं रचना में।
आभार
जय हो
हमें तो कमी नहीं लगी!!
nice
सच की अभिव्यक्ति .. लड़की की नज़र से ...
कमाल की प्रस्तुति .......जितनी तारीफ़ करो मुझे तो कम ही लगेगी
तेरी आंखें चुपके से निहारती हैं
"उदय" जी इस सशक्त अभिव्यक्ति के लिए आभार| मन से जो उद्दाम वेग से निकले वही कविता है|
तेरी आंखें चुपके से
जब निहारती हैं
wah.............
kami to kuchh nahi adhikta hi lagi ji hame to....
sachchai bhi ho sakti hai...par....
kunwar ji,
सही है जी
kafi kuch kaha ja sakta hai aur aapne kafi kuch kah bhi diya hai.........bahut karine se ladki ke manobhavon ko ukera hai.
अच्छा है बहुत ही अच्छा है
भाव विव्हल! अच्छी प्रस्तुति!
हमें ठीक से नज़र नहीं आई ,,,अगर कुछ कमी है तो दूर करे आपको सब पता है :)
बहुत बढिया रचना .।कमी नहीं लगी
Sir,
संभवतः एक लड़की के पारिवेशिक शर्म की कमी है इस कविता में.
परन्तु एक खुलापन जो लड़की के शब्दों में है वो प्रशंसनीय है!
nice
बहुत ही अच्छा कविता है |
Nice presentation about a girl in love.
kami ye hai ki aap ki ye kavita shuru hotey hi khatm ho gay thoda aur likhyye http://kanpurashish.blogspot.com/
कानपुर ने ठीक कहा....वक्ष ..से सीधे विदाई का कमर दर्शन करा दिया.....इसके मध्य-अंतराल का भाव दर्शन ?????....पर यह सब अपने अपने अनुभव- स्मृतियाँ -ज्ञान-मंतव्य से करें ...
---सुन्दर रचना ...
---पर जानने के इस दर्प में ही नारी प्राय: गलत स्थान पर भटक--फंस जाती है ...रोने के लिए ......
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