Wednesday, March 17, 2010

मंजिल ...

अगर चाहोगे
मुश्किलें हट जायेंगी
हौसला है लडने का
हर जंग जीत जाओगे !

मत देखो पहाडी को
कदम बढाओगे
तो चोटी पर पहुंच जाओगे !

हौसला है मजबूत
आग के दरिया को
तैर कर निकल जाओगे !

गर डर गये काटों से
तो फ़ूल कहां से पाओगे
चाह बनेगी दिल में
तो राह मिल जायेगी !

मत रुको डर कर
मत रुको थक कर
चलते चलो, बढते चलो
'मंजिल' को पा जाओगे !!

6 comments:

shama said...

गर डर गये काटों से
तो फ़ूल कहां से पाओगे
चाह बनेगी दिल में
तो राह मिल जायेगी
Wah..bahut khoob!

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

मत देखो पहाडी को
कदम बढाओगे
चोटी पर पहुंच जाओगे

श्याम भाई-यही जज्बा हो्ना चाहिए।
मंजिल तक पहुंचा जा सकता है।

सुंदर कविता के लिए आभार

मनोज कुमार said...

सीधे सीधे जीवन से जुड़ी इस कविता में नैराश्य कहीं नहीं दीखता। एक अदम्य जिजीविषा का भाव कविता में इस भाव की अभिव्यक्ति हुई है।

संजय भास्‍कर said...

मंजिल तक पहुंचा जा सकता है।

सुंदर कविता के लिए आभार

Anil Pusadkar said...

शिक्षाप्रद रचना।

Amitraghat said...

प्रेरणास्पद कविता........"
amitraghat.blogspot.com