Thursday, February 11, 2010

प्रार्थना / prayer

तेरा - मेरा
अंजाने में एक रिश्ता बनता है
हर पल मैं तुझको -
और तू मुझको भाते हैं

मैं चाहूं तू साथ मेरे हो
तू भी चाहे मेरे संग-संग रहना
फ़िर क्यूं
मुझसे तू - तुझसे मैं
तन्हा-तन्हा रहते हैं

मैं पुकार रहा हूं तुझको
तू आजा मेरे "सूने दिल" में
मेरे दिल में रहकर
तू अपना ले मुझको

फ़िर जब देखे ये जग सारा
तो मुझमें तुझको देखे
मुझमें "तुझको" देखे ।

6 comments:

संजय भास्‍कर said...

बहुत ही बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

रश्मि प्रभा... said...

prarthna ke shabd kuch alag se, bahut hi achhe

डॉ टी एस दराल said...

शिव तो रोम रोम में समाये रहते हैं , भक्तों के।
शिवरात्रि की शुभकामनायें।

अमिताभ श्रीवास्तव said...

shiv ratri par shiv ko samarpit rachna.../ shubhkamnaye.

देवेन्द्र पाण्डेय said...

पनियाँ बरसे लगल झम झम बोल बम बम.
..आपकी कविता और शिव की आराधना में डूबे मन की अभिव्यक्ति.

Kajal Kumar said...

वाह भाई बहुत सुंदर लिखा है आपने.