मुझको लुभा गई
फ़िर धीरे से, मुझमें समा गई
रोज सोचता हूं,
फ़िर धीरे से, मुझमें समा गई
रोज सोचता हूं,
छोड दूं उसको
शाम हुई ,
शाम हुई ,
उसकी याद फ़िर से आ गई
दूर भागा, तो सामने आ गई
मैं पूछता हूं ,
दूर भागा, तो सामने आ गई
मैं पूछता हूं ,
क्यों छोडती नहीं मुझको
वह "बेजुबां" होकर भी,
वह "बेजुबां" होकर भी,
मुझसे लड गई
क्यूं भागता है, डर कर मुझसे
तू सदा पीते आया है मुझे
क्या आज मै तुझे पी जाऊंगी !
ये माना,
क्यूं भागता है, डर कर मुझसे
तू सदा पीते आया है मुझे
क्या आज मै तुझे पी जाऊंगी !
ये माना,
तेरे इस "सितमगर" शहर में
हर कदम पर "बेवफ़ा" बसते हैं
डर मत
मै बेवफ़ा नहीं - मै बेवफ़ा नहीं।
हर कदम पर "बेवफ़ा" बसते हैं
डर मत
मै बेवफ़ा नहीं - मै बेवफ़ा नहीं।
14 comments:
मै बेवफ़ा नहीं। nice
तेरी वफ़ाई ने क्या क्या सितम किये, अच्छा ही होता ग़र तू बेवफ़ा होती.
धन्यवाद उदय जी.
waah ........kya baat hai.
ये माना, तेरे इस "सितमगर" शहर में
हर कदम पर "बेवफ़ा" बसते हैं
डर मत
मै बेवफ़ा नहीं - मै बेवफ़ा नहीं। ---bahut badhiya.wah-
बहुत खूब, लाजबाब !
वाह-वाह-वाह...हम भी हो गए आतुर पीने के लिए...चलें-बैठे और पियें...
so nice sir :)
एक शेर सुनिए...पता नहीं किसने लिखा है...आपकी रचना पढ़ते हुए याद आ गया:-
तर्के मय* का ईशारा जो करती हैं मुझे
लुत्फ़ ये है की उसी आँख में मैखाना है
तर्के मय : शराब छोड़ने का
नीरज
तू सदा पीते आया है मुझे
क्या आज मै तुझे पी जाऊंगी !
Achhi prastuti...
इसीलिए शायर ने कहा है की
बेशक खाली बोतल तोड़ो बुल्लेशाह ये कहता |पर वो बोतल कभी ना तोड़ो जिसमे एक पेग रहता|
सच कहा वो बेवफा नहीं ।
बस उसकी वफ़ा ही मार जाती है।
वाह .......... क्या बात है ....
"नशा शराब में होता तो नाचती बोतल..."
बहुत बढ़िया रचना!!
bahut badiya ...
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