"चलो अच्छा हुआ, जो तुम मेरे दर पे नहीं आए / तुम झुकते नहीं, और मैं चौखटें ऊंची कर नही पाता !"
‘उदय’ तेरी आशिकी, बडी अजीब हैजिससे भी तू मिला, उसे तन्हा ही कर गया।
उदय भाई साहिबनए साल में नए मित्र जैसे खूबसूरत तोहफे के रूप में मिले हैं आप.बहुत ही खूबसूरत शे'र के लिए धन्यवाद.
उदय भाई बहुत खूबसूरत शेर है...लेकिन पूरी ग़ज़ल कब पढ़वायेंगे...?नीरज
Post a Comment
2 comments:
उदय भाई साहिब
नए साल में नए मित्र जैसे खूबसूरत तोहफे के रूप में मिले हैं आप.
बहुत ही खूबसूरत शे'र के लिए धन्यवाद.
उदय भाई बहुत खूबसूरत शेर है...लेकिन पूरी ग़ज़ल कब पढ़वायेंगे...?
नीरज
Post a Comment