Saturday, February 17, 2018

वक्त

वक्त घसीट रहा है
हम, घिसटते जा रहे हैं

घिसटते-घिसटते ..
हम, थोड़ा-थोड़ा छिलते जा रहे हैं

इक दिन ..
हम, पूरी तरह छिल जायेंगें

वक्त .. चलते रहेगा ...

किसी-न-किसी को
हर क्षण ... घसीटते रहेगा .... ?

- श्याम कोरी 'उदय'

4 comments:

कविता रावत said...

वक्त पर किसी का जोर कहाँ चलता है
बहुत सटीक

kuldeep thakur said...

जय मां हाटेशवरी....
हर्ष हो रहा है....आप को ये सूचित करते हुए.....
दिनांक 020/02/2018 को.....
आप की रचना का लिंक होगा.....
पांच लिंकों का आनंद
पर......
आप भी यहां सादर आमंत्रित है.....

शुभा said...

वाह!! सुंंदर रचना।

'एकलव्य' said...

निमंत्रण

विशेष : 'सोमवार' २६ फरवरी २०१८ को 'लोकतंत्र' संवाद मंच अपने सोमवारीय साप्ताहिक अंक में आदरणीय माड़भूषि रंगराज अयंगर जी से आपका परिचय करवाने जा रहा है।

अतः 'लोकतंत्र' संवाद मंच आप सभी का स्वागत करता है। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/

टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।