चलो दाँव लगाएं
एक और ... रिस्क का ..
जैसा ...
पहले लगाते रहे हैं ... हम ..
हार-जीत ... देखेंगे ..
कौन भिड़ता है .. कौन टांग अड़ाता है
अगर नहीं लड़े ... नहीं भिड़े .. तो ...
जिन्दगी .. नीरस ही रहेगी
उत्साह को .. हम तरसते रहेंगे ...
कोल्हू के बैल .. की भाँती
हम चलते रहेंगे ... घिसटते रहेंगे ..
चलो दाँव लगाएं
एक और ... रिस्क का .. ?
~ श्याम कोरी 'उदय'
एक और ... रिस्क का ..
जैसा ...
पहले लगाते रहे हैं ... हम ..
हार-जीत ... देखेंगे ..
कौन भिड़ता है .. कौन टांग अड़ाता है
अगर नहीं लड़े ... नहीं भिड़े .. तो ...
जिन्दगी .. नीरस ही रहेगी
उत्साह को .. हम तरसते रहेंगे ...
कोल्हू के बैल .. की भाँती
हम चलते रहेंगे ... घिसटते रहेंगे ..
चलो दाँव लगाएं
एक और ... रिस्क का .. ?
~ श्याम कोरी 'उदय'
1 comment:
बहुत खुबसूरत रचना
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