Sunday, December 27, 2015

आसमानों में ...

हम तो वैसे ही ... जमीं पर हैं ...
तू ... हाँ तू ... तू अपनी सोच,
सुना है, सुनते हैं, 
आसमानों में  ...
घरौंदे, सराय, महल, नहीं होते ?

~ श्याम कोरी 'उदय'

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