Tuesday, April 21, 2015

इक इंतेहा कहानी ...

खूब जुदा है, अदा उसकी 'उदय'
न मिलती है
न बिछड़ती है
'खुदा' जाने …
दोस्त है वो, या रकीब है, 

अब … क्या बयां करूं
कैसे बयां करूं
जख्म हैं, पर निशां नहीं हैं,

उफ़ …
बस …
सिर्फ …
दर्द की इक इंतेहा कहानी है ?