क्यूँ इश्क के लिए इबादत करें
रंज-औ-गम तू छोड़, कुछ और बातें करें
गर इश्क में ही मरना है
तो चल वतन से मुहब्बत करें,
तो चल वतन से मुहब्बत करें,
तनिक ख्याल-औ-मिजाज बदल के देख
फिर देख, खौल तू लहू का
गर समंदर की लहरें भी न फीकी पड़ जायें
तो तू पानी समझ, मेरा लहू बहा देना,
तो तू पानी समझ, मेरा लहू बहा देना,
वर्ना, कब तक रोता-बिलखता रहेगा तू
झूठी मुहब्बत में …
आ संग मेरे, एक सच्ची मुहब्बत करें रंज-औ-गम तू छोड़, कुछ और बातें करें ?
~ श्याम कोरी 'उदय'
1 comment:
Very nice....
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