Thursday, February 19, 2015

होड़-बेजोड़ ...

बिलकुल नशा नहीं है आँखों में उसके जालिम
वर्ना कलम उठाने की जुर्रत न हमसे होती ??
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कुल्फियों, फुल्कियों व किताबों में होड़ है
देखते हैं दिल्ली, कौन कितना बेजोड़ है ?
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देख के, वो सियासत मेरी जल-भुन रहा है 'उदय'
जिसने खुद की हुकूमत में बस्तियाँ जलाईं थीं ?
… 
सच ! न टोपी, न टीका, न माला, न टोटके
हम कैसे मान लें 'उदय', कि तुम ज्ञानी हो ?
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