हम जानते हैं, ये टेड़े-मेड़े लोगों की बस्ती है 'उदय'
यहां सीधे-सच्चे, फिसल-फिसल के गिर पड़ते हैं ?
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पता नहीं आज कौन किसके साथ है
यहां सीधे-सच्चे, फिसल-फिसल के गिर पड़ते हैं ?
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पता नहीं आज कौन किसके साथ है
विकास का मुद्दा, एक अलग बात है ?
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कुछ इस तरह का नाता है उनका हमसे
दोस्ती, वफ़ा, फरेब, सब साथ-साथ हैं ?
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अपुन ने तो 'उदय', गुरुओं का गुरु बनने की ठानी है
क्योंकि - चेले-चपाटों की, होती छोटी-सी कहानी है ?
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खुद को खुद ही तराश लो यारा
कहीं ऐसा न हो वक्त तराशने पे अड़ जाए ?
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1 comment:
हाँ खुद को ही तराशना होगा..
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