गर इसे ही मुहब्बत कहते हैं, तो ये कैसी मुहब्बत है 'उदय'
वो मिलकर भी, मिलते नहीं हैं ???
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ताज्जुब मत कर उनकी मुलाक़ात पे
दिल उनके… … … … एक जैसे हैं ?
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हम घंटाल हैं, गुरु-घंटाल हैं 'उदय'
जब तक चाहेंगे, तब तक बजेंगे ? ...
घुप्प अंधेरों में भी आस रखो
देखें, उजाले छिपेंगे कब तक ? …
सच ! इतनी बेरुखी की कुछ न कुछ तो वजह जरूर होगी
वर्ना, साथ जीने-मरने के वादे भी कोई भूलता है 'उदय' ?
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3 comments:
सच ! इतनी बेरुखी की कुछ न कुछ तो वजह जरूर होगी
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...
अच्छी रचना !
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