Friday, July 18, 2014

गुरु-घंटाल ...

गर इसे ही मुहब्बत कहते हैं, तो ये कैसी मुहब्बत है 'उदय'
वो मिलकर भी, मिलते नहीं हैं ???
ताज्जुब मत कर उनकी मुलाक़ात पे
दिल उनके… … … … एक जैसे हैं ?
हम घंटाल हैं, गुरु-घंटाल हैं 'उदय'
जब तक चाहेंगे, तब तक बजेंगे ?
...
घुप्प अंधेरों में भी आस रखो
देखें, उजाले छिपेंगे कब तक ?

सच ! इतनी बेरुखी की कुछ न कुछ तो वजह जरूर होगी
वर्ना, साथ जीने-मरने के वादे भी कोई भूलता है 'उदय' ?

3 comments:

मनोज कुमार said...

सच ! इतनी बेरुखी की कुछ न कुछ तो वजह जरूर होगी

Pratibha Verma said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति...

देवदत्त प्रसून said...

अच्छी रचना !