कल …
ढंकी ढंकी सी शाम थी,
और आज …
है खुली खुली सुबह … ?
…
ढंकी ढंकी सी शाम थी,
और आज …
है खुली खुली सुबह … ?
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उफ़ ! वो कैसे ज्योतिषी हैं, कैसे पंडित हैं 'उदय'
जिन्हें, अच्छे-औ-बुरे दिनों की समझ नहीं है ?
…
जिन्हें, अच्छे-औ-बुरे दिनों की समझ नहीं है ?
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'खुदा' जाने वो मिट्टी के बने हैं
हार के भी हार मानते नहीं हैं ?
…
गर, 'एग्जिट पोल', 'एग्जेक्ट' न निकले 'उदय' तो
तो, तो क्या ! डूब मरेंगे बहुत चुल्लु भर पानी में ?
…
झूठ औ लफ्फाजियों की बुनियाद पे सरकारें
उफ़ ! … कब तक 'उदय' … कब तक ????
1 comment:
एग्जिट पोल की तो हो गयी बल्ले बल्ले
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