Wednesday, February 26, 2014

मुगालते ...

गर, पांवों के नीचे कम्पन हुई है 'उदय' 
तो कहीं-न-कहीं तो भूकंप आया होगा ? 
… 
कभी-कभी हम सुलझते-सुलझते भी उलझ जाते हैं 
वहाँ गणित,…………… कुदरत का होता है 'उदय' ? 
…  
सच ! गर, वो हमें, अपनी पार्टी में शामिल कराने में सफल हो गए 
तो हम मान लेंगे 'उदय', कि उनके नाम का … कोई जादू जरुर है ?
… 
कूड़ा-करकट एक जगह इकट्ठा हो रहा है 'उदय' 
सड़न, गन्दगी, बदबू, हैजा,
महामारी, ……… के लिए लोग तैयार रहें ? 
…  
हम जानते हैं 'उदय', बिकने वालों की कोई औकात नहीं होती 
फिर भी, अगर, वो मुगालते में हैं …… तो कोई क्या करे ??
… 

4 comments:

Rajendra kumar said...


आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (28.02.2014) को " शिवरात्रि दोहावली ( चर्चा -1537 )" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें, वहाँ आपका स्वागत है। महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ।

Tamasha-E-Zindagi said...

बेहतरीन रचना

Tamasha-E-Zindagi said...

बेहतरीन रचना

निवेदिता श्रीवास्तव said...

बेहतरीन .....