उन्ने, दुआ तो माँगी थी, मगर खामोशियों में
उफ़ ! 'खुदा' भी मौन रह कर, हमें देखता रहा ?
…
हम जानते हैं, उन्हें, इतनी बेरहमी रास नहीं आनी है
मगर ये बात,…………… उन्हें समझाये कौन ???
…
बेफिजूल के मुद्दे हैं, बेफिजूल के किस्से हैं
नाम का लोकतंत्र है, नाम का जनतंत्र है ?
…
उफ़ ! बहुत बेरहम है यार मेरा
मिलकर भी…मिलता नहीं है ?
…
2 comments:
गहरे हैं।
बहुत उम्दा...
Post a Comment