Monday, August 19, 2013

ख्यालात ...

मेरी शौहरत-औ-बुलंदियों में, मेरे रकीबों का हाँथ है
वर्ना, मेरी खुद की,…कहाँ इतनी औकात थी यारो ?

बहुत दूर छोड़ आया हूँ मैं अपना जतन
अब जहाँ हूँ मैं 'उदय' वही है मेरा वतन ?

कदम कदम पे, आज प्याज के खूब चर्चे हैं 'उदय'
सच ! अब वो नेता भी हैं, और दुकानदार भी हैं ?

बहुत कुछ, बदल लिए हैं मिजाज हमने भी 'उदय'
सुनते हैं, … एक-से ख्यालात उन्हें भाते नहीं हैं ?

हम जानते हैं, वे बगैर शर्त तो नजर उठाते तक नहीं हैं
आज देख के मुस्कुराए हैं, जरुर कोई सौदा हुआ होगा ?

1 comment:

प्रवीण पाण्डेय said...

सुन्दर अभिव्यक्ति