Monday, April 8, 2013

बेझिझक ...


हर घड़ी, यूँ ही गुमसुम मत रहा कीजे 
दिल की बातें भी तो, कुछ कहा कीजे ?

इक तेरी दीद को हम तरशते हैं सुबह-औ-शाम 
देख के हमको, तनिक मुस्कुरा दिया कीजे ??

हमारे लव तो सिल दिए हैं जहां के दस्तूरों ने 
तुम तो दिल की, बेझिझक कह दिया कीजे ? 

सच ! मिलेगा क्या तुम्हें, दूर रहकर हमसे 
तनिक सिमट के भी तो मिल लिया कीजे ?

किसने रोका है तुम्हें राह में दिलवर 
तुम तो बेधड़क आया-जाया कीजे ? 

रखा है क्या, मिलेगा क्या तुम्हें परछाइयों में 
कभी दिल खोल के भी तो मिल लिया कीजे ?

1 comment:

प्रवीण पाण्डेय said...

सुप्त नहीं, उन्मुक्त रहो प्रिय।