Wednesday, June 27, 2012

प्रेम की अस्थियाँ ...


काश ! हदों की भी हद होती 
तो शायद, भ्रष्टाचारियों को फांसी लग गई होती ? 
... 
सच ! बिना सैटिंग के भी कभी कुछ हुआ है 'उदय' 
एक तुम हो, खामों-खाँ लिखने में उलझे हुए हो ? 
... 
सच्चे प्रेम की अस्थियाँ, आज गंगा में बहा दी हैं 'उदय' 
क्या करते, ....... नया ऑफर आया है मुहब्बत का ?? 
... 
किसी लुच्चे को, लुच्चा क्यूँ कह देते हो 'उदय' 
आखिर, .............. उसकी भी तो आबरू है ? 
...
'उदय' क्या मिलेगा इन्हें, इस ऊँचाई को छू कर 
अपनी ही नजर में, ................ गिर गिर कर ? 

1 comment:

Arvind Jangid said...

किसी लुच्चे को, लुच्चा क्यूँ कह देते हो 'उदय'
आखिर, .............. उसकी भी तो आबरू है ? ....बहुत सुन्दर !