इल्म नहीं था, यकीं नहीं था, कि - वादे उसके टूटेंगे
वर्ना जाँच-परख हम लेते, वे कितने कच्चे-पक्के हैं ?
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रहम करो, न बनो तुम कसाई यारो
ये मुल्क है, ..... कोई बकरा नहीं है ?
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खंजर धंसा है पीठ में यारों के हाँथ का
अब किसको कहें कि यार तुम इसको निकाल दो ?
1 comment:
क्या कहें, रीति प्रीति की बदल रही है..
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