Monday, June 11, 2012

सुबह-औ-शाम ...


चूल्हे पे गंजी देख के बच्चों में आस थी 
पानी उबल रहा था, और माँ उदास थी !
... 
सच ! इस कडुवे की लत सुधार लो 'उदय' 
कहीं ऐंसा न हो, मीठा जहर लगने लगे ? 
... 
बहुत भटका हूँ, भटकते रहा हूँ, सुबह-औ-शाम 'सांई' 
पर अब ..... तेरी चौखट से जाने को जी नहीं करता !
... 
लो, सब देखते रहे, और उनने झंडा गाड़ दिया 
कौन कहता है हिमालय पे साईकल नहीं जाती ? 
... 
जिस दिन हम खुद को किसी का कर देंगे 'उदय' 
सच ! ये तन्हाई भी मिट जायेगी !!

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