Sunday, June 10, 2012

हुआ-हुआ ...


इस दौड़ को दौड़कर हम क्या कर लेंगे 'उदय' 
यहाँ पर कौन है जो फिक्स नहीं है ?
... 
सच ! अब हुनर की कोई कीमत नहीं रही 
लड़इयों की हुआ-हुआ तमगों की शान है !
... 
गर मुझे कोई और जुबां आती, तो मैं उसमें बात कर लेता 
मगर, दुःख इस बात का है कि - उन्हें हिन्दी नहीं आती ?

No comments: