Tuesday, May 29, 2012

मुर्दों के ढेर ...


ज़रा समय की नींद तो खुल जाने दो 'उदय' 
फिर देखते हैं, फकीरी हमारी औ अमीरी जमाने की !
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छपने-छपाने के दस्तूर खूब निराले हैं 'उदय' 
उफ़ ! हम भेजेंगे नहीं, और वो छापेंगे नहीं ?
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ऐ दोस्त, ये फकीरी कोई सजा नहीं है 
ये तो अंतिम रास्ता है मेरे मुकाम का ! 
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ये कैंसे लोगों की बस्ती है 'उदय' 
जहां लोग, मुर्दों के ढेर में तमगे तलाश रहे हैं ? 
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ये भ्रम था तेरा, कि - ............ हम तेरे दीवाने हैं 
पर सच्चाई तो ये है कि - हम तुम्हें चाहते बस हैं !
... 
ताउम्र हम अपने हांथों की लकीरों को चमकाते रहे 
पर पहुँचना था यहाँ, लो, न चाहकर भी पहुँच गए !