Tuesday, May 15, 2012

भरोसा ...

रंज-औ-गम के दौर तो कब के जा चुके हैं 'उदय'
सच ! अब तो ... है आलम जश्न-औ-मौज का !!
...
शुक्र है 'खुदा' का, कि हमें अंधेरे भी रास आने लगे हैं
वैसे भी, उजालों का ... कोई भरोसा नहीं रहता !!

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